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त्रिस्तुतिक मत समीक्षा प्रश्नोत्तरी अन्य सम्यग्दृष्टि जो 'समाहिगराणं' स्व परको समाधि करनेवाले हैं । वृद्ध पुरुषों का संप्रदाय है कि, उन सम्यग्दृष्टियों का वह समाधिकरत्व स्वरुप है । 'वैयावच्चगराणं' आदि पदों को षष्ठी विभक्ति लगी है। इसका अर्थ यह होता है कि, उन वैयावच्चकारी आदि सम्बंधी मैं कायोत्सर्ग करता हूं। अथवा सप्तमी के अर्थ में षष्ठी विभक्ति समझें । तब अर्थ यह होगा कि उन्हें निमित्त मानकर कायोत्सर्ग करता हूं।
नोट:
उपरोक्त ललिताविस्तरा के पाठमें 'वैयावच्चगराणं' इत्यादि पदों द्वारा स्पष्टरुप से देवता के स्मरणार्थ चतुर्थ स्तुति का समर्थन किया
है।
कायोत्सर्ग द्वारा देव-देवी को अपने वैयावच्च आदि कार्यों के लिए जागृत करने का उद्देश्य होता है। ऐसा उपरोक्त पाठ में स्पष्ट रुप से कहा गया है। उपरोक्त पाठ से यह स्पष्टता भी हो गई है कि, जैसे अरिहंतादि का स्मरण लोकोत्तर कुशल परिणाम का कारण है । वैसे ही वैयावच्चकारी आदि सम्यग्दृष्टि देवताओं का स्मरण भी लोकोत्तर कुशल परिणाम का कारण है।ये सभी भाववृद्धि के कारण होने से स्मरण के लिए योग्य हैं। 'अरिहंत चेइयाणं' इत्यादि पदों से जैसे अरिहंत परमात्मामें उपयोग स्थिर करके मनः प्रणिधानपूर्वक कायोत्सर्ग किया जाता है।वैसे ही 'वैयावच्चगराणं'आदि पदों से भी वैयावच्चकारी आदि सम्यग्दृष्टि देवताओं में उपयोग स्थिर करके मनःप्रणिधानपूर्वक स्मरणार्थ कायोत्सर्ग किया जाता है। इसलिए प्रथम स्तुति की विहितता एवं उपयोगिता की तरह ही चतुर्थ स्तुतिकी भी विहितता एवं उपयोगिता सिद्ध होती है।