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त्रिस्तुतिक मत समीक्षा प्रश्नोत्तरी
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नामोनिशान नही होता है यह भावानुष्ठान । देव-देवीयों को निमंत्रण, उनकी प्रशंसा आदि द्रव्यानुष्ठान में आवश्यक है । कार्य की निर्विघ्न पूर्णाहूति के लिए उनकी सहायता लेने का विधान है और भावानुष्ठानमें की गई याचना करनेसे आशय की शुद्धता नही रहती । शुद्ध आशय रहित धर्मक्रिया कर्मक्षय में निमित्तभूत न बनकर कर्म बन्धनका कारण बन जाती है।
शासनरक्षा, विद्या, साधनमंत्र आदि की सिद्धि, शासन भक्तोंकी रक्षा आदि कार्य सब द्रव्यानुष्ठानमें अन्तर्गत है, कारण कि इसमें कर्म क्षय का हेतु (भाव) नहीं है।
भाव अनुष्ठान में भौतिक याचना चाहना कोई स्थान नहीं होता । भाव अनुष्ठानोमें याचना करनी और इच्छा रखनी यह तो विपरीत मार्ग है।"
(नोट : मुनिश्री ने 'सत्य की खोज' पुस्तक में उपर्युक्त प्रश्नोत्तर जस का तस दिया है। (नूतन) संस्करण में भी ऐसा ही दिया है।)
तो क्या मुनिश्री जयानंदविजयजी ने अनुष्ठानों के जो भेद बताएं हैं, वे गलत हैं ? यदि गलत हैं तो कैसे गलत हैं ?
उत्तर : मुनिश्री जयानंदविजयजी ने अनुष्ठानों के जो भेद बताए हैं वे बिल्कुल झूठे हैं। यह निम्नलिखित स्पष्टताओं से आपकी समझमें आ जाएंगे। • मुनिश्री द्वारा पेश किए गए मुद्दों पर प्रश्न उठता है कि,
जिसमें नंदी की क्रिया हो वह द्रव्यानुष्ठान कहलाता है, यह द्रव्यानुष्ठान की व्याख्या वे किस शास्त्र से लेकर आए यह बताएं अथवा किस शास्त्र वचन के आधार पर उन्होंने यह व्याख्या की है, यह स्पष्ट करें,
प्रतिष्ठा में नंदी की क्रिया कहां आती है ? प्रतिष्ठा में देव-देवीकी सहायता के लिए साधर्मिक के तौर पर उनकी पूजा की जाती है तथा उपशांति के लिए दुष्ट देवों को बलि चढाई जाती हैं। प्रतिष्ठा के बाद देववंदन किया जाता है। पूजनोंमें