________________
७८
त्रिस्तुतिक मत समीक्षा प्रश्नोत्तरी द्रव्यानुष्ठान कर्मक्षय का कारण नहीं बनेगा, बल्कि कर्मबंध का कारण बनेगा। (यह तीसरी आपत्ति आएगी।)
उनकी कल्पना शास्त्रविरोधी होने से उत्सूत्ररुप बनेगी। (यह चौथी आपत्ति आएगी।)
लेखक को एक असत् कल्पना कितनी आपत्तियों में फसाती है यह पाठकगण स्वयं देख सकते हैं।
जैनशासन का कोई भी अनुष्ठान कर्मक्षय के निमित्त से ही करना है। कर्मक्षय की धर्मसामग्री जिससे मिलती है उस पुण्यानुबंधी पुण्य की अपेक्षामें भी कालांतर में कर्मक्षय का उद्देश्य ही निहित है। देव-देवी की सहायता लेने से कर्मबंध नहीं होता । परन्तु शास्त्र तथा शास्त्र मान्य आचरण का पालन करने से उन देव-देवी से सहायता मिलती ही है। साथ ही साथ कर्मक्षय भी होता ही है। क्योंकि, शास्त्र मान्य परम्परा का आदर करने से तथा उनके द्वारा कही गई क्रिया करने से नियमा कर्मक्षय होता ही है।
मुनिश्री इसी लेख में लिखते हैं कि,
"शासन रक्षा, विद्या, साधन मंत्र आदि की सिद्धि, शासन भक्तोंकी रक्षा आदि कार्य सब द्रव्यानुष्ठान के अन्तर्गत है, कारण कि इसमें कर्मक्षय का हेतु (भाव) नहीं है।"
उपरोक्त लेख में मुनिश्री ने दो गलत कार्य किए हैं। एक भव्यात्माओं से धोखाधड़ी की है। क्योंकि, विविध महापुरुषों द्वारा जो शास्त्ररक्षा आदि के कार्य हुए है और उनमें देव-देवी की सहायता ली गई है, उन बातों का विस्तार से उल्लेख नहीं किया है। विस्तार से लिखें तो स्वयमेव उनकी मान्यता असत्य सिद्ध हो सकती है।
दूसरा, ‘महापुरुषों द्वारा किए गए शासनरक्षादि के कार्यों में उद्देश्य कर्मक्षय नहीं था,' ऐसा कहकर उन्होंने महापुरुषों की अवहेलना की है। उन्होंने किसी