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त्रिस्तुतिक मत समीक्षा प्रश्नोत्तरी
सहायता लेने का विधान नहीं, ऐसा वे किस शास्त्र के आधार पर कहतें हैं ? उस शास्त्रका नाम, उसका संदर्भ उन्हें प्रस्तुत करना चाहिए।
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धर्मसंग्रह, श्राद्धविधि, योगशास्त्र, पूर्वाचार्यकृत सामाचारी आदि अनेक ग्रंथ तो कहते हैं कि प्रतिक्रमणादि में भी देव-देवी की सहायता के लिए उनके कायोत्सर्ग व स्तुति कहनी चाहिए। तो इन सभी ग्रंथो के शास्त्रपाठ उन्हें मान्य नहीं ? यदि उन्हें धर्मशास्त्र व उनके विधान मान्य न हो तो कोई भी सच्चा जैन कैसे मान्य कर सकता है ?
-(उनकी कल्पनावाले) द्रव्यानुष्ठा में देव - देवी की सहायता लेने में दोष नहीं लगता है, तो भावानुष्ठान में दोष कैसे लग सकता है? यह उन्हें शास्त्र पाठ के आधार पर प्रस्तुत करना चाहिए। शास्त्रीय विषयों में कोरी कल्पना नहीं चल सकती ।
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मुनिश्री कहते हैं कि, ( उनकी कल्पनावाले) भावानुष्ठान में याचना करने से आशय शुद्धि नहीं रहती ।
यहां मुनिश्री के ऐसे झूठे विधानों पर प्रश्न उठता है कि......
भावानुष्ठान में देव - देवी से याचना करने से शुद्धि नहीं रहती, ऐसा वे कहते हैं, यह किस शास्त्र के आधार पर कहते हैं ? वह शास्त्रपाठ उन्हें प्रस्तुत करना चाहिए ।
देव-देवीसे समाधि-बोधि मांगने से द्रव्यानुष्ठान में आशय शुद्धि रहती हो तो भावानुष्ठान में क्यों न रहे ?
क्या आप यह कहना चाहते हैं कि द्रव्यानुष्ठान में आशय शुद्धि की जरुरत नहीं और भावानुष्ठान में आशय शुद्धि की जरुरत है । इसलिए भावानुष्ठान में देव - देवी से याचना नहीं की जानी चाहिए। क्या उनकी यह बात अज्ञानता अथवा कदाग्रही के घर की नहीं ? यदि शास्त्रों के घर की हो तो उन्हें शास्त्रपाठ प्रस्तुत करने चाहिए ।
क्या ऐसा नहीं लगता कि, अपनी मान्यता को सिद्ध करने के लिए दिए गए