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त्रिस्तुतिक मत समीक्षा प्रश्नोत्तरी आशय रहित धर्मक्रिया कर्मक्षय में निमित्तभूत न बनकर बन्धन का कारण बन जाती है।"
समीक्षा : जगतमें कहा जाता है कि, चोर चोरी करते जाए और चौकीदार के हाथों पकड़ा जाए ऐसे निशान खुद ही भूल से छोड़ता जाता है।
शास्त्र विरोधी प्ररुपणा करनेवाले व लिखनेवाले भी अपनी प्ररुपणा व लेख में ऐसी भूलें छोड़ते हैं कि, वे स्वयमेव शास्त्रविरोधी प्ररुपणा करनेवाले अथवा लिखनेवाले साबित हो जाते है। ___मुनिश्री उपर लिखते हैं कि 'कार्यकी निर्विघ्न समाप्ति के लिए (उनकी कल्पनानुसार) द्रव्यानुष्ठान में देव-देवी की सहायता लेने का विधान है।' यहां मुनिश्री के ऐसे विधान पर प्रश्न उठता है कि...
क्या (उनकी कल्पनावाले) प्रतिक्रमणादि आदि भावानुष्ठान में विघ्न आते ही नहीं?
शास्त्रों में तो कहा गया है कि कल्याणकारी कार्यों में बडे लोगों के समक्ष भी विघ्न आते हैं। योगद्रष्टि समुच्चय ग्रंथ में गाथा-१ की टीका में कहा गया है कि,.. श्रेयांसि बहुविनानि, भवन्ति महतामपि। अश्रेयसि प्रवृत्तानां क्वापि यान्ति विनायकाः॥ __-अच्छे कार्यों में (कल्याणकारी कार्योंमें) महापुरुषों के समक्ष भी विघ्न आते हैं। अकल्याणकारी प्रवृत्तिमें प्रवृत्त व्यक्तियों से विघ्न भी दूर भागते हैं। ___तो क्या प्रतिक्रमणादि कल्याणकारी नहीं, कि उनमें विघ्न ही नहीं आ सकते ? यदि उनमें विघ्न आते हों तो विघ्नों के निवारणार्थ देव-देवी को निमंत्रण उनकी स्तुति आदि करने में क्या दोष हो सकता है?
(उनकी कल्पनावाले) द्रव्यानुष्ठानमें देव-देवीकी सहायता लेने का विधान है और (उनकी कल्पनावाले) भावानुष्ठानमें देव-देवीकी