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त्रिस्तुतिक मत समीक्षा प्रश्नोत्तरी
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भौतिक स्वार्थ से शासनरक्षा के कार्य किए होंगे, यह उन्होंने मिथ्या आरोप लगाया है।
साथ ही गलत प्ररुपणा की है कि शासनरक्षादि कार्यरुप द्रव्यानुष्ठान में कर्मक्षय का उद्देश्य ( भाव) नहीं होता।
-पू.वज्रस्वामीजी महाराजाने देव-देवी की सहायता ली थी, यह आवश्यक चूर्णिमें दर्शाया गया है।
__-पू. कलिकाल सर्वज्ञश्री ने ज्ञानसाधना के लिए सरस्वती देवी की कृपा हांसिल की थी।इसका अनेक ग्रंथोमें उल्लेख है। ___ -पू.महोपाध्यायश्री यशोविजयजी महाराजाने भी ज्ञानसाधना के लिए सरस्वती देवीकी साधना की थी, यह सब कोई जानता है।
-श्री वज्रस्वामीजी ने देव-देवी की सहायता से शासनभक्तों की रक्षा की थी, यह प्रत्येक वर्ष पर्युषणा में सब कोई सुनता है।
___-श्री वीर परमात्माकी पाट परम्परा में हुए प्रभावक महापुरुष पू.आ.भ.श्री मानदेवसूरिजी ने मरकी रोग निवारणार्थ नाडोल में लघुशांति की रचना की थी, इसकी गवाही स्वयं जैन शासन का इतिहास देता है।
-पू.आ.भ.श्री मानतुंगसूरिजी ने बेडियां तोडने के लिए मंत्रगर्भित भक्तामर की रचना की थी।
-इन सभी में मूलभूत आशय तो मुक्ति की प्राप्ति एवं मुक्ति के अंगो की रक्षा के सिवाय और क्या था?
इसके अलावा कई अन्य दृष्टांत शास्त्रों के पृष्ठों पर स्वर्णाक्षरों से अंकित हैं।
सभी स्थलों पर महापुरुषों का उद्देश्य स्व-पर का उपकार करना ही है। उपकार कर्मक्षय का अनन्य कारण है और कर्मक्षय की सामग्री प्रदान करता है। इसलिए महापुरुषों का ते ते कार्य करने में उद्देश्य तो एक मात्र कर्मक्षय ही था।फिर भी लिख देना कि, इन कार्यों में कर्मक्षय का उद्देश्य