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त्रिस्तुतिक मत समीक्षा प्रश्नोत्तरी
औचित्यका अतिक्रमण नहीं होता। जिस स्थल पर मोक्ष मांगा है, वहां भी मोक्ष की उत्कट चाहत ही समझें । मोक्ष की उत्कृष्ट चाहत के योग से देवदेवी के पास भी मोक्ष मांगा है। देव-देवी मोक्ष नहीं दे सकते। परन्तु मोक्ष की कारणभूत धर्मध्यान की प्राप्ति में आनेवाले अंतराय अवश्य दूर कर देंगे।
___ सार्मिक अन्य सार्मिक की सहायता करे इसमें भले ही वर्तमानमें कोई मुश्किल दूर करने का उद्देश्य हो, धर्म में जोड़ने का उद्देश्य हो, उन्मार्ग से वापस मोड़ने का उद्देश्य हो, परन्तु अंततः तो मोक्षमार्ग के पथ पर अग्रसर करके मोक्ष में पहुंचाने का ही उद्देश्य होता है। (और तो ही भावोपकार कहलाता है।)
इसलिए यह भी याद रखें कि, मोक्ष के निर्मल उद्देश्यपूर्वक निर्मल हृदय से सम्यग्दृष्टि देव-देवी के पास समाधि-बोधि मांगी जाए तो, वे देते हैं, अन्यथा हमारे सामने भी नहीं देखते।
एक बात यह भी याद रखें कि, स्तुतिकारोंने देव-देवी के पास भी मोक्ष मांगा है। तो अरिहंत परमात्मा के पास तो मोक्ष ही मांगा जाना चाहिए, यहस्वयमेव सिद्ध होता है।
इस प्रकार मुनि श्री जयानंदविजयजी ने अपनी पुस्तकमें उठाए सभी मुद्दे शास्त्रीय अनभिज्ञता के परिचायक हैं । शास्त्रों के उपरी तौर पर अवगाह को कुतर्कों के तौर पर प्रस्तुत किया है। इसके अलावा और कुछ नहीं है।
इसलिए पाठकों से सिफारीश है कि, शास्त्र तथा शास्त्र मान्य सुविहित परम्परा से सिद्ध देव-देवी के कायोत्सर्ग, उनकी स्तुति तथा उनके औचित्य के विषय में कोई शंका न रखें । साथ ही शास्त्रों ने तथा सुविहित परम्पराने जो मर्यादाएं बताई हैं, उनका भी अवश्य पालन करना ही चाहिए।
किसी भी वस्तु में किया जानेवाला मर्यादा का उल्लंघन अनर्थ का कारण बनता है। अतिरेक तो उससे भी बुरा है। पाठक इतना विचार करके शास्त्रमान्य