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त्रिस्तुतिक मत समीक्षा प्रश्नोत्तरी
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आदि में सम्यग्दृष्टि देव-देवीसे मोक्ष मांगने से मना किया है। जबकि कुछ स्थलों पर कर्मो का क्षय मांगा है। इसी प्रकार आराधना पताका' पयन्ना आदि में मोक्ष मांगा है। इन सभी ग्रंथो की बातों का समन्वय कैसे करना?
उत्तर : सम्यग्दृष्टि देव-देवी के कायोत्सर्ग व उनकी स्तुति विहित एवं उपयोगी है, यह हमने विस्तार से आगे देखा। उनसे विघ्नोपशम, समाधि-बोधि लाभ, ज्ञानावरणीय कर्मों के समूह का नाश भी मांगा जा सकता है, यह भी विहित है।
अब मोक्ष मांगना भी विहित है यह देखें। जहां ज्ञानावरणीय कर्मोंका नाश मांगा है। वहां मात्र ज्ञानावरणीय कर्मो का नाश ही विवक्षित नहीं है। क्योंकि, ज्ञानावरणीय कर्मोंके नाश से प्राप्त ज्ञान मारक भी बना सकता है, यदि मोहनीय कर्म का क्षयोपशम न हुआ हो तो। मोहनीय कर्म के क्षयोपशमपूर्वक ज्ञानावरणीय कर्म का क्षयोपशम सम्यग्ज्ञान का प्रादुर्भाव करता है। सम्यग्ज्ञान क्रिया को खींच लाता है। क्रिया वीर्यांतराय के क्षयोपशम से प्राप्त होती है। (दर्शनावरणीय कर्म का क्षयोपशम ज्ञानावरणीय कर्म के क्षयोपशम से जुड़ा ही होता है।) संक्षिप्तमें, चारों घाती कर्मों के नाश के अनुकूल क्षयोपशम यहां मांगा गया है। इसलिए चारों घाती कर्मोंका नाश ही मांगा है और वही मोक्ष की मांग है। धर्म क्रिया का फल मोक्ष है। सभी धर्मक्रियाओं का मूल समाधि है। अर्थात् समाधिकी विद्यमानता में धर्मक्रिया आत्मस्पर्शी एवं सातत्यपूर्ण बने तथा इस प्रकार की धर्मक्रिया कर्मों का नाश करे और अंत में मोक्ष प्रदान करे । इस प्रकार समाधि मोक्ष का परम कारण है। इसलिए हेतुहेतुमद् (फल) भाव से दोनों के बीच कथंचित् अभेद है। इसलिए समाधि की मांग में मोक्ष की ही मांग है। साधक समाधि मांगता है, वह मोक्षप्राप्ति के लिए मांगता है। भौतिक सुख मजे से भोगने के लिए नहीं मांगता।