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त्रिस्तुतिक मत समीक्षा प्रश्नोत्तरी
सम्यग्दृष्टि हैं, ऐसा शास्त्रों में कहीं उल्लेख नहीं मिलता ।
• शास्त्रीय लघुशांतिस्नात्र, बृहद्शांतिस्नात्र आदि पूजनों में अधिष्ठायक देवदेवी, सम्यग्दृष्टि देव-देवी आदि को साधर्मिक के रुप में आमंत्रण दिया जाता है। (वे पूजनों में देव - देवी सहायक तत्त्वके स्वरुपमें स्थापित होते हैं 1) इसके अलावा दुष्ट देवों की बलि चढाई जाती है। वे उपद्रव न करें इस उद्देश्य से ।
प्रतिक्रमण की आद्यंत की चैत्यवंदना में स्मरणार्थ देव-देवी का कायोत्सर्ग व उनकी थोय कही जाती है।
प्रतिक्रमण में ज्ञानकी समृद्धि प्राप्त करने के लिए श्रुतदेवी तथा तीसरे व्रत के पालनार्थ क्षेत्रदेवता का कायोत्सर्ग किया जाता है।
देववंदन में चौथी थोय सम्यग्दृष्टि देव-देवी की बोली जाती है। प्रतिष्ठादि विधियों में शास्त्रोक्त विधि के अनुसार सहायक सम्यग्दृष्टि देवदेवीकी विधियां की जाती हैं।
सम्यग्दृष्टि देव - देवी सम्बंधी उपरोक्त सभी प्रवृत्तियों का उद्देश्य विघ्नोपशम, समाधि - बोधि लाभ, ज्ञानावरणीय कर्मका क्षय, सभी कर्मोंका क्षय व अंततः मोक्ष होता है। क्योंकि, जैनशासन में कोई भी प्रवृत्ति केवल मोक्ष के लिए ही की जाती है। मोक्षप्राप्ति में अवरोधक बननेवाले कर्मों का क्षय मांगना अथवा मोक्षप्राप्ति के उपाय मांगना, मोक्ष मांगने के बराबर है।
उपरोक्त शास्त्रोक्त विधि के अनुसार देव - देवी का औचित्य बना रहे यह योग्य ही है। परन्तु वर्तमानमें उससे जो अतिरेक हो रहा है, वह अयोग्य है। परन्तु इसका कारण विहित देवी-देवका कायोत्सर्ग करना और उनकी स्तुति बोलना नहीं है। बल्कि पूर्व में जो बताई गए हैं वे कारण हैं।
प्रश्न: जीवानुशासन, श्राद्धप्रतिक्रमणसूत्रकी अर्थदीपिका टीका