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त्रिस्तुतिक मत समीक्षा प्रश्नोत्तरी
प्रति प्रतिरोधकभाव भी कारण है। जैसे कि कुंभकार के पास घड़ा बनाने का चक्र, दंड आदि सम्पूर्ण कारण सामग्री है। किन्तु दृष्ट या अदृष्ट प्रतिरोध हाजिर हो तो घड़ा स्वरुप कार्य उत्पन्न नहीं होता। वैसे ही मोक्ष की साधना में तत्पर साधक को साधना की आवश्यक सामग्री मिल गई होने के बाबजूद प्रत्यक्ष या परोक्ष विघ्न हाजिर हो तो मोक्ष की साधना अविरत एवं उल्लासपूर्वक नहीं चल सकती। इससे कर्मनिर्जरा रुपी कार्य सिद्ध नहीं हो पाता।
इसलिए प्रतिरोध समान विघ्नों का नाश करने के लिए साधक द्वारा किया जानेवाला वैयावच्चकारी आदि सम्यग्दृष्टि देव-देवी का कायोत्सर्ग व उनकी स्तुति सार्थक है, निरर्थक नहीं। लाभदायी है हानिकारक नहीं।
प्रश्न : अधिष्ठायक देव-देवी का आदर किया जा सकता है?
उत्तर : अधिष्ठायक देव-देवी परमात्मा के भक्त हैं । शासन के रक्षक हैं। आराधक की सहायता करनेवाले हैं। इसलिए वे अपने सार्मिक हैं।
जैसे साधर्मिक का सन्मान किया जाता है, वैसे ही अधिष्ठायक देव-देवी का भी आदर किया जा सकता है। जैसे साधर्मिक का सन्मान करने से साधर्मिक के गुणों की अनुमोदना होती है और अनुमोदना का फल प्राप्त होता है। वैसे ही अधिष्ठायक देव-देवी का आदर करने से उनके गुणों की अनुमोदना होती है और उसका फल प्राप्त होता है।
साधर्मिक के गुणों की अनुमोदना से गुणप्राप्ति होती है। वैसे ही अधिष्ठायक देव-देवी केप्रभुभक्ति, शासनसेवा आदि गुणों की उपबृंहणा से गुण प्राप्ति होता है।
जैसे श्रावक-श्राविका की आशातना नहीं करनी है, वैसे ही अधिष्ठायक देव-देवी को भी 'ये तो भोग में लीन हैं, शासन की रक्षा नहीं करते, असंयतअसंयती हैं, रागी द्वेषी हैं, इत्यादि बोलकर उनकी आशातना नहीं करनी है।
इसीलिए पगाम सज्जाय में 'देवाणं आसायणाए, देवीणं आसायणाए०' इत्यादि पाठ द्वारा देव-देवीकी आशातना हुई हो तो साधु