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त्रिस्तुतिक मत समीक्षा प्रश्नोत्तरी की उपासना शुरु हुई और वह उलटी पड़ने लगी, साथ ही मलीन देवताओं की साधना शुरु हुई उन मलीन देवताओं का जोर बढ़ गया । वीतराग परमात्माकी भक्ति गौण हो गई तथा देव-देवियोंकी पूजादि बढ़ गया है। इसके परिणामस्वरुप परमात्मा की आशातना शुरु हुई।
___-इत्यादि जो भयस्थान बताए गए हैं, वे सच्चे हैं, परन्तु उनका उपाय एक ही है कि,
गृहस्थ भौतिक सुख के अर्थी न रहें और साधु मान-सम्मान प्रोजेक्ट, भक्त समूह एकत्र करना आदि प्रवृत्तियों से रुक जाएं और साथ ही मोक्ष के लिए ही धर्मक्रिया करना व मोक्ष के लिए ही धर्म हो, ऐसी प्ररुपणा करना शुरु हो तो इन सभी समस्याओं का हल हो सकता है। इसके लिए विहित चतुर्थ स्तुति की मान्यता को दोष देने की जरुरत नहीं। __ पू.आ.भ.श्री हरिभद्रसूरिजीकृत ललितविस्तरा एवं पू.आ.भ.श्री
मुनिचंद्रसूरिजीकृत ललितविस्तरा पंजिका में उचित के विषय में मनः प्रणिधान पूर्वक उपयोग लोकोत्तर शुभ परिणाम का कारण कहा गया है। इन उचितों में श्री अरिहंत परमात्मा, श्रीसिद्ध परमात्मा आदि की तरह सम्यग्दृष्टि देव-देवीको भी ग्रहण किया है। अर्थात् जैसे श्री अरिहंत परमात्मा के विषय में मनः प्रणिधानपूर्वक उपयोग का फल लोकोत्तर शुभ परिणाम की प्राप्ति है । वैसे ही वैयावच्च करनेवाले, समाधि देनेवाले सम्यग्दृष्टि देव-देवी के विषय में किए गए मनः प्रणिधानपूर्वक उपयोग का फल भी लोकोत्तर शुभ परिणाम की प्राप्ति है।
यहां आगे कहा गया है कि, आप्त पुरुषों का कथन है कि, वैयावच्च करनेवाले सम्यग्दृष्टि देव-देवी के कायोत्सर्ग करनेवाले को विघ्नोपशम पुण्यबंधादि फल प्राप्त होता है।'
प्रश्न: आपने उपर जो बात की, उसके बारे में ललितविस्तरा का पाठ तो आप देते ही नहीं ? बिना पाठ के आपकी बात कैसे मानी जाए?