________________
त्रिस्तुतिक मत समीक्षा प्रश्नोत्तरी
उत्तर : पू.आ.भ.श्री अभयदेवसूरिजी महाराजने 'किल' शब्द प्रयोग द्वारा अन्य की बात में अरुचि जाहिर की है। परन्तु चतुर्थ स्तुति में अरुचि जाहिर नहीं की हैं। क्योंकि, पू.आ.भ.श्री चैत्यवंदन भाष्यकार द्वारा प्रतिपादित चार व आठ थोय की चैत्यवंदना को मान्य रखते हैं । अर्थात् भाष्यकार परमर्षिने चतुर्थ स्तुति का प्रतिपादन एवं चतुर्थ स्तुतिकी विहितता-उपयोगिता सिद्ध की है, जो पू.आ.भ.श्री अभयदेवसूरिजीने मान्य की है। इसलिए 'चतुर्थ स्तुति नवीन है'अन्य की इस बात में ही अरुचि जाहिर की है।
प्रश्न : पू.आ.भ.श्री अभयदेवसूरिजी के 'चतुर्थ स्तुतिः किलार्वाचीन' इस पंचाशक के प्रवचनमें कहे गए किल' शब्द प्रयोग की चर्चा करते हुए आ.भ.श्री यतीन्द्रसूरिजीने श्री सत्यसमर्थक प्रश्नोत्तरी' पुस्तक के पृष्ठ-२५ पर लिखा है कि, ___ 'चतुर्थ स्तुति किलार्वाचीन' में किल शब्द के कोश तथा शास्त्रोमें अनेक अर्थ मिलते हैं। परन्तु यहां प्रकरणवश निश्चय, अरुचि एवं संभावना ये तीन अर्थ ग्रहण किए गए हैं । शिष्ट परम्परा विलासी एवं सत्यप्ररुपक अभयदेवाचार्यने चौथी स्तुतिको निश्चय से अर्वाचीन लिखी और उसके करनेवालों के प्रति हार्दिक अरुचि प्रकट की है। इसी प्रकार देव स्तुति के प्रचारकी संभावना प्रकट की है कि, संभव है चौथी देवस्तुति नवीन ही है, प्राचीन नहीं। यदि यह प्राचीन होती तो संभावना क्यों की जाती?
इसी प्रकार तीर्थकोटराजी के अनुचित लेख का समुचित उत्तरदान पत्र' इस पुस्तक के लेखकश्री ने लिखा है कि,
_ 'पूर्वाचार्य नवांगवृत्तिकारक-श्रीमद् अभयदेवसूरिजी महाराज पंचाशक सूत्र वृत्ति में 'चतुर्थ स्तुतिः किलार्वाचीना' इस वाक्यमें (किल) अव्यय का जितना अर्थ व्याकरण कोश या जैनशास्त्रों में किया गया है तिन सर्व अर्थ से चोथी थुई अर्वाचीन (नवीन) ही सिद्ध होती है।'