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त्रिस्तुतिक मत समीक्षा प्रश्नोत्तरी
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है। उस फल का उस समय अभाव है। इसलिए वह अतात्त्विक है ।) अतात्त्विक होने के बावजूद सम्यग्दर्शन की प्राप्ति-निर्मलता एवं यावत् चारित्र का परिणाम पैदा कर देता है।
इसलिए लेखक श्रीने दीक्षा स्वयं भावानुष्ठान होने के बावजूद दीक्षा को द्रव्यानुष्ठान में खपाकर उपरोक्त आपत्तियों को टालने का अपनी दोनों पुस्तकों में प्रयत्न किया है, जो शास्त्रविरोधी है ।
इस प्रकार 'सत्य की खोज' पुस्तक के प्रश्न- ३४३ का उत्तर शास्त्र एवं शास्त्रकारों व भगवान की आशातना करनेवाला है।
इसेक अलावा लेखक मुनिश्री जयानंदविजयजी ने 'सत्य की खोज' पुस्तक के प्रश्न- ३२३ - ३२४के उत्तर में जो बातें की हैं उन बातों का भी उपरोक्त चर्चा से खंडन हुआ जानें ।
प्रश्न: 'सत्य की खोज' पुस्तक के लेखक मुनिश्री जयानंदविजयजी महावीर परमात्माके चरित्र को याद कराके देव - देवी से सहायता मांगने से मना करते हैं, यह सही है ?
उत्तर : लेखकश्री की बात बिलकुल असत्य है । कदाग्रह की विकृतियों की यह उपज है। उनकी बात की असत्यता को देखते हुए पहले वे इस पुस्तकमें क्या कहते हैं यह देखें।
'सत्य की खोज' पुस्तक के पृष्ठ - ७८-७९ पर प्रश्न- ३२३ के उत्तरमें मुनिश्री जयानंदविजयजीने लिखा है कि,
“साधु बनना अर्थात् कर्म क्षय के लिए मोह राजाके सामने युद्ध करना यह अन्तरंग युद्ध है। बाह्य युद्ध में एक व्यक्ति दूसरे व्यक्तिकी सहायता कर सकता है, लेकिन अंतरंग युद्ध में कोई भी दूसरा व्यक्ति सहायता नहीं कर सकता यह अटल (ध्रुव) नियम है। जहां कोइ व्यक्ति सहाय कर ही नहीं सकता हो, तो यहां किसी की सहायता मांगने का कोई प्रयोजन नहीं होता ।
जो यह कहते है कि संयमपालनमें विघ्नादि दूर करने के लिए सहायता