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त्रिस्तुतिक मत समीक्षा प्रश्नोत्तरी
चाहिए। ___ परमात्माने इन्द्र महाराजा से कहा है कि, 'अरिहंत किसी की सहायता से केवलज्ञान प्राप्त नहीं करते।' उसमें अरिहंतो के लिए यह बात कही गई है। अन्य साधकों के लिए नहीं । अर्थात् 'कोई भी साधक किसी की भी सहायता से केवलज्ञान प्राप्त नहीं करता।' ऐसा परमात्माने इन्द्र महाराजासे नहीं कहा था । केवलज्ञान प्राप्त करने से पहले सामर्थ्य योग प्राप्त करना पड़े और सामर्थ्ययोग प्राप्त करने के लिए शास्त्रयोग प्राप्त करना पड़े । शास्त्रयोगकी भूमिका तथा शास्त्रयोग की प्राप्ति के लिए इच्छायोग प्राप्त करना पड़े। इच्छायोग में प्रशस्त इच्छाएं करनी हैं। इसमें शास्त्रयोगकी प्राप्ति की उत्सुकता होती है। इसमें शास्त्रयोग प्राप्तिके लिए साधक तत्वोकी मांग होती है । बाधक तत्वो का नाश करने का उद्देश्य होता है। इसके लिए अरिहंत परमात्मा, साधु भगवंत, सार्मिक तथा साधर्मिक सम्यग्दृष्टि देव-देवीयों की सहायता मांगनी होती है।
इसी अपेक्षा से श्राद्धप्रतिक्रमण सूत्रकी टीका, जीवानुशासन, १९वां पंचाशक, ललित विस्तरा, चैत्यवंदन महाभाष्य आदि अनेक ग्रंथोमें देव-देवियों के कायोत्सर्ग करना और उनकी थोय कहने के लिए कहा गया है। इसी प्रकार सम्यग्दृष्टि देव-देवी से समाधि-बोधि, कर्मक्षय, सम्यग्ज्ञान व यावत् मोक्ष मांगने की बात की गई है। (मोक्ष कैसे मांगा जाता है ? इस प्रश्नका उत्तर आगे देखेंगे।)
इस प्रकार परमात्मा का अनुकरण नहीं किया जा सकता। परमात्मा ने जो कहा हो वैसा करना होता है । परमात्मा अर्थ से द्वादशांगी की प्ररुपणा करते हैं । पू.गणधर भगवंत परमात्माकी कृपा प्राप्त करके द्वादशांगी को सूत्र में पिरोते हैं। श्रुत स्थवीर भी पू.गणधर भगवंत द्वारा विरचित द्वादशांगी का आलंबन देकर सूत्रोंकी रचना करते हैं। परमात्मा के हाथोंसे दीक्षित हुए साधु १४,००० थे। इन सभी साधु भगवंत ने एक-एक