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त्रिस्तुतिक मत समीक्षा प्रश्नोत्तरी
मांगनी चाहिए, वे महावीर परमात्मा के जीवन चरित्र को अच्छी तरह देखें। वहां कर्म क्षय के लिए किसीकी भी सहायता काममें नहीं आयी, ऐसा स्पष्ट समझ में आ जायेगा।"
उपरोक्त लेखमें मुनिश्री जयानंदविजयजीने मात्र कुतर्क किए हैं। निश्चयनय की बातें करने बैठ गए हैं। निश्चयनय की अपेक्षा से तो भाववृद्धि में, कर्म से लड़ने में विघ्नों को टालने में किसी भी आलंबन की जरुरत नहीं। न तो अरिहंत परमात्माके आलंबन की जरुरत है और न अन्य किसी अनुष्ठान के आलम्बन की जरुरत है। अंतरंग युद्ध प्रारम्भ से निश्चयनय का आलंबन लेकर नहीं लड़ा जाता, यहयाद रखने की जरुरत है। ____ कर्म के विरुद्ध आंतरिक युद्ध लड़ने के लिए बाह्य आलंबनो (परमात्मा की प्रतिमा, आगम, परमात्मा द्वारा प्ररुपित प्रतिक्रमणादि अनुष्ठान तथा सार्मिको की सहायता आदि बाह्य आलंबनो) की प्रथम आवश्यकता है। बाह्य
आलंबनो का सेवन करके आत्मा बलवान बनने के बाद किसी भी आलंबन के बिना स्वयं आंतरिक युद्ध कर सकता है, कर्मो का क्षय कर सकता है।
साधक अनेक की सहायता लेकर साधना मार्गमें आगे बढ़ते हैं। साक्षात् परमात्मा विचरण करते हों तो परमात्माकी सहायता लेते हैं । मोक्ष मार्ग को समझने के लिए आगम की सहायता लेते हैं। जहां मानवशक्ति काम न कर सकती हो, वहां सम्यग्दृष्टि देव-देवीकी सहायता लेते हैं। प्रत्येक स्थल पर सहायता लेने का उद्देश्य मात्र मोक्षप्राप्ति का ही होता है। मोक्षप्राप्ति के लिए धर्म सामग्री प्राप्त करनेका उद्देश्य होता है और धर्मसामग्री जिससे प्राप्त हो वह पुण्यानुबंधी पुण्यका उद्देश्य होता है।
लेखक मुनिश्री जयानंदविजयजीने महावीर परमात्माके जीवन चरित्र को स्मरण करने की सिफारिश की है। यदि परमात्मा का ही अनुसरण करना हो तो लेखकश्री को मारवाड़ के विकट मार्गों से गुजरने के लिए भोमियो नहीं रखना