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त्रिस्तुतिक मत समीक्षा प्रश्नोत्तरी पयन्नाकी रचना की थी। इसमें एक आराधना पताका' पयन्ना है। इसमें श्रुतदेवी को नमस्कार किया गया है। यह पाठ इस प्रकार है। "जाव दिट्टि दाणमित्तेण देई पणईण नर सुर समिद्धि सिव
पुररज्झ आणा रयाण देवीए तीए नमो ॥१॥" भावार्थ : यदि दृष्टि प्रसन्न करे तो नमे हुए लोगों को नर-सुर समृद्धि देते हैं। श्री अरिहंत परमात्मा की आज्ञा पालनमें रक्त आत्माओं को मोक्षमार्गमें आनेवाले विघ्नों का नाश कर मोक्ष का राज देनेवाली श्रुतदेवी को नमस्कार।
इस प्रकार परमात्मा के समय में भी सम्यग्दृष्टि देव-देवियों को नमस्कार किया जाता था। यहां साधु श्रुतदेवी को नमस्कार करते हैं, इसमें श्रुतदेवी अविरतिधर होने से नमस्कार नहीं होता। किन्तु फिरभी नमस्कार किया गया है। इसका कारण यह है कि, श्रुतदेवी की ज्ञानावरणीय कर्मों के समूह का नाश करने की जो शक्ति है, उस शक्तिकी उपबृंहणा स्वरुप नमस्कार किया गया है। न कि चौथे गुण स्थानकवाले व्यक्ति को नमस्कार किया गया है।
श्रुतदेवी मोक्ष कैसे देती हैं यह आगे देखेंगे। लेखक मुनिश्री जयानंदविजयजी ने उपरोक्त लेख के नीचे पृष्ठ-७९ पर श्री मेतार्य मुनिवर, श्री कालकाचार्यजी, श्री भरत चक्रवर्ती, श्री अभयकुमार, श्री कृष्ण महाराजा, सुलसा श्राविका आदि के उदाहरणों को विकृत ढंगसे प्रस्तुत किया है।
आगमों में दैवी सहायता प्राप्त करनेवाले भव्यात्माओं के उदाहरणों का उल्लेख है, यह लेखक को खटका है। इसलिए उदाहरणोंको विकृत ढंग से प्रस्तुत किया है। अपना झूठा आगमप्रेम, आगमद्वेषके रुपमें जाहिर न हो जाए, इसलिए आगमों के इन उदाहरणों का सहारा लेकर उनके आसपास जो घटनाएं बनी थी, उनके उल्लेख भी नहीं किए । साथ ही उन भव्यात्माओं ने किस आशय से दैवी सहायता मांगी थी, यह भी आगम में देखने की जहमत नहीं ली और उन भव्यात्माओं ने जिस आशय से दैवी