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त्रिस्तुतिक मत समीक्षा प्रश्नोत्तरी
है कि...
' चातुर्मासिक तथा वार्षिक प्रतिक्रमण में क्षेत्रदेवताका तथा पाक्षिक प्रतिक्रमणमें भवनदेवता का कायोत्सर्ग किया जाता है। कुछ साधु चातुर्मासिक प्रतिक्रमणमें भी भवनदेवता का कायोत्सर्ग करते हैं । '
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बृहद्भाष्य में भी कहा गया है कि,
'कायोत्सर्ग करके परमेष्ठि को नमस्कार करके वैयावच्च करनेवाले सम्यग्दृष्टि यक्ष आदि देवों के लिए स्तुति बोलें ।'
( जैनशासनमें प्रकरण ग्रंथो की भेंट देनेवाले) प्रकरण कर्ता श्रीहरिभद्रसूरिजी महाराजाने भी ललित विस्तरा ग्रंथ में कहा है कि,
' (देववंदन में ) चौथी स्तुति वैयावच्च करनेवाले यक्ष-यक्षिणी आदि सम्यग्दृष्टि देवों की होती है।'
इस प्रकार आगममें दिए गए प्रमाणों से सिद्ध होता है कि, सम्यग्दृष्टि देवों से समाधि-बोधिलाभ की प्रार्थना करने में कुछ भी अयोग्य नहीं । इस प्रकार ४७वीं गाथा का अर्थ है ॥४७॥
उपरोक्त श्राद्ध प्रतिक्रमण सूत्र की पू. आ. भ. श्री रत्नशेखरसूरिजी कृत ‘अर्थदीपिका' टीका में स्पष्ट कहा गया है कि,
सम्यग्दृष्टि देवताओं से समाधि - बोधि मांगी जा सकती है । इसमें कोई दोष नहीं है । सम्यक्त्व भी मलीन नहीं होता ।
सम्यग्दृष्टि देवता बोधि-समाधि देने समर्थ हैं। सहयोगी कारण हैं। जैसे श्री मेतार्य मुनिवर को पूर्वभव के मित्र देवने सहायता दी थी, उसी प्रकार सम्यग्दृष्टि देवता भी सहायता करते हैं । इसलिए उनकी प्रार्थना सार्थक हैं।
आवश्यकचूर्णिमें श्री वज्रस्वामीजी महाराजाने क्षेत्रदेवता का कायोत्सर्ग करके क्षेत्रदेवता की सहायता प्राप्त की थी ऐसा उल्लेख है । यह