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त्रिस्तुतिक मत समीक्षा प्रश्नोत्तरी
गलत तो नहीं थे।
भगवान जैसे सर्वज्ञ - सर्वदर्शी का विरोध करनेवाले जमालि जैसे अनेक थे। इसलिए कहीं भगवान गलत नहीं थे। जो कदाग्रही व अप्रज्ञापनीय हों वह भगवान से भी नहीं मानते और जो निराग्रही तथा प्रज्ञापनीय हों, वे ग्रंथकार परमर्षि के एक शास्त्रवचन से भी असत्य से वापस आ जाते हैं ।
यदि आप ऐसा कहते हों कि, जिसका विरोध हुआ हो वह निर्विकल्प स्वीकार नहीं किया जा सकता और उसकी पुष्टि नहीं की जा सकती, तो आपके प्रदादागुरु श्री राजेन्द्रसूरिजीने असत्य त्रिस्तुतिक मत का पुनरोद्धार किया, तब पू.आत्मारामजी म. आदि अनेक महापुरुषों ने विरोध किया था। तो फिर आप अपने प्रदादागुरु की बात की पुष्टि करने के लिए इतनी महेनत क्यों कर रहे हो ? ऐसी दोहरी नीति क्यों अपना रहे हो ?
प्रश्न : जिस बात का विरोध हुआ हो और उससे उस बात को सिद्ध करना पड़ता हो, तो वह बात निर्विकल्प कैसे स्वीकार की जा सकती है ?
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उत्तर : आपका प्रश्न ही उचित नहीं है । क्योंकि, जिस बात का विरोध हुआ हो, वह स्वीकार नहीं की जा सकती, ऐसी जो आपकी मान्यता है तो, वस्तुकी अनंत धर्मात्मकता को क्यों स्वीकारते हो ? क्योंकि अन्य दर्शनकारों ने उसका विरोध किया है ?
शब्दको पुद्गल क्यों मानते हो ? क्योंकि, नैयायिकों ने उसे पुद्गलके रुपमें स्वीकार नहीं किया । बल्कि आकाश के गुण स्वरुप स्वीकार किया है।
अंधकार को पुद्गल का परिणाम क्यों मानते हो । अंधकार को तो वैशेषिक- नैयायिकोंने 'तैजस्' के अभाव के रूपमें स्वीकार किया है। पुद्गल के परिणाम के तौर पर विरोध किया है।