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त्रिस्तुतिक मत समीक्षा प्रश्नोत्तरी
विद्वद्वर्य पू.आ.भ.श्री विजय राजशेखरसूरीश्वजी महाराजाने पंचाशक प्रकरण के अपने भाषान्तर में भाग-१, पृष्ठ-१८० पर टिप्पणी में जो लिखा है, उस टिप्पणी के लेख से विरोधी लेख मुनिश्री जयानंदविजयजीने 'अंधकार से प्रकाश की ओर' पुस्तक के पृष्ठ-२३ पर लिखा है और (अपनी मान्यतामें अवरोधक बनती होने से) पू.आ.भ.श्री द्वारा लिखित टिप्पणी का कुछ हिस्सा इरादापूर्वक छोड़ दिया है।
सर्वप्रथम हम मुनिश्री जयानंदविजयजी ने अपने उस पुस्तक के पृष्ठ-२३ पर पू.आ.भ.श्री विजय राजशेखरसूरिजी का जो अभिप्राय ग्रहण किया है वह देखें और इसके बाद पू.आ.भ.श्रीने अपने भाषान्तरमें क्या लिखा है, यह देखेंगे। 'अंधकार से प्रकाश की ओर' पृष्ठ-२३...
और इसके नीचे टिप्पणी में लिखा है-पू.अभयदेवसूरिजीने 'चतुर्थ स्तुतिः किलार्वाचीन' इस प्रकार किल शब्द का प्रयोग करके चतुर्थ स्तुति के प्रति अपनी अरुचि प्रकट की । पू.आचार्य हेमचंद्रसूरिजी म.सा.ने अनेकार्थ संग्रहमें कहा है कि 'वार्ता संभाव्योः किल हेत्वरुच्योरलीके च' (वार्ता, संभावना के लिए, अरुचि, असत्य इन पांच अर्थो में किल शब्द का प्रयोग किया जाता है।)
लेखकश्री ने उपरोक्त लेख में 'किल शब्द का प्रयोग करके चतुर्थ स्तुति के प्रति अपनी अरुचि प्रकट की'
यह बात पू.आ.भ.श्री राजशेखरसूरिजी के नाम से लिखी है किन्तु यह असत्य है। क्योंकि, पू.आ.भ.श्री ने ऐसा लिखा ही नहीं है। क्या लिखा है यह नीचे देखने को मिलेगा। (लेखक मुनिश्री जयानंदविजयजी के उपरोक्त लेख में शाब्दिक भूलें भी हैं। किन्तु फिलहाल उन पर चर्चा नहीं करेंगे, पू.आ.भ.श्री राजशेखरसूरिजी द्वारा अनुवादित पंचाशक भाषान्तर भाग-१, पृष्ठ-१८० की टिप्पणीका शब्दशः पाठ....