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त्रिस्तुतिक मत समीक्षा प्रश्नोत्तरी
निस्सकडमनिस्सकडे, वावि चेइए सव्वहिंथुइ तिण्णि। वेलं व चेइयाणि, विणाओ एक्कक्किया वा वि॥
यतो दंडकावसाने एका स्तुतिर्दीयते इति दंडकस्तुतिरुपं युगलं भवति । अन्ये त्वाहुः, दंडकैः शक्रस्तवादिभिः स्तुतियुगलेन च समयभाषया स्तुतिचतुष्टयेन च रुढेन मध्यमा ज्ञेया बोद्धव्या, तथा संपूर्णा परिपूर्णा सा च प्रसिद्धदंडकैः पंचभिः स्तुतित्रयेण प्रणिधानपाठेन च भवति चतुर्थस्तुतिः किलार्वाचीनेति किमित्याह उत्कृष्यते इत्युत्कर्षा- दुत्कृष्टा ।
इदं च व्याख्यानमेके "तिण्णि वा कड्डई जाव, थुइओ तिसिलोइया। ताव तत्थ अणुण्णायं कारणेण परेण वी" त्येतां कल्पभाष्यगाथां 'पणिहाणं मुत्तसुत्तीए' इति वचनमाश्रित्य कुर्वंति अपरेत्वाहुः पंचशक्र स्तवपाठोपेता संपूर्णेति विधिना पंचविधाभिगम प्रदक्षिणात्रयपूजादिलक्षणेन विधानेन ॥ खलु वाक्यालंकारे अवधारणे वा तत्प्रयोगं च दर्शयिष्यामः वंदना चैत्यवंदना त्रिविधा त्रिभिः प्रकारैः त्रिप्रकारैरेव भवतीति।
भावार्थ : नमस्कार करके 'सिद्ध मरुयमणिंदिय.... सिरसा' इत्यादि पाठपूर्वक नमस्कार स्वरुप करणभूत करके (अर्थात् नमस्कार स्वरुप करण द्वारा) किए जानेवाले नमस्कार से जघन्य वंदना होती है। पाठ एवं क्रिया अल्प होने से वंदना जघन्य होती है, यह जानें।
उत्कृष्टादि तीन भेद से चैत्यवंदना तीन प्रकार की है, ऐसा कहकर भी जघन्य वंदना को प्रथम कहने में कोई दोष नहीं । क्योंकि, वह आदि शब्द प्रकारार्थ है। इस प्रकार प्रथम जघन्य वंदना कही गई है।
तथा अरिहंत चेइयाणं इत्यादि दंडक व स्तुति प्रतीत है। इन दोनोंका युगल दंडक स्तुति युगल है। प्राकृत होने के कारण प्रथमा एक वचन या तृतीया एक वचन का लोप जानें । पाठ एवं क्रिया मध्यम होने से यह वंदना मध्यमा जानें।
यह व्याख्यान कल्पभाष्य की गाथाको आश्रयी करता है। यह गाथा इस