Book Title: Tattvarthshlokavartikalankar Part 7
Author(s): Vidyanandacharya, Vardhaman Parshwanath Shastri
Publisher: Vardhaman Parshwanath Shastri
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१२ )
तत्त्वार्थ श्लोक वार्तिकालंकारे
आत्मा ही परद्रव्यके साथ बंध जाना जैन दर्शनमें इष्ट किया गया है । वार्तिक में "स्वमिथ्या दर्शनादयः " ऐसा कथन करदेनेसे सांख्योंके इन मन्तव्योंका खण्डन हो जाता है कि मिथ्यादर्शन आदिक तो प्रकृति के परिणाम हैं और पुरुषके बंध जानेमे कारण हैं । बात यह हैं कि चोरका खोटा परिणाम विचारे साहुकार के बंधनेका कारण नहीं हो सकता है। इसी प्रकार प्रकृतिका परिणाम सर्वथा भिन्न हो रहे शुद्ध आत्माको नहीं बाँध सकता है अन्यथा कृतनाश और अकृतके अभ्यागमका प्रसंग हो जावेगा । प्रकृतिने मिथ्यादर्शन, हिंसा, दान, पूजन, आदि काय किये उसका किया कराया मिट्टी में मिल गया यो प्रकृतिके कृत पापोंका नाश हो गया और जा आत्मा शुद्ध, अकर्ता, बैठा हुआ था उसको बंधनमे पड़कर दुःख, सुख भोगना पड़ा, यही अकृतका अभ्यागम है | इसी प्रकार क्षणिक चित्तका बंध मानने पर भी पापपुण्य कर्म करनेवाला चित्त मरगया, उसके दुःखसुखफल किसी कालान्तरभावी अन्य चित्तको ही भुगतने पड़ते हैं। जोकि न्यायमार्ग से विरुद्ध है । उक्त वार्तिकमे पड़े हुये हेतु की उपपत्ति यों करली जाय कि मिथ्यादर्शन, अविरति, आदि के साथ बंधका अन्वयानुविधान और व्यतिरेकानुविधान हो रहा है । मिथ्यादर्शनादिके होनेपर ही बंध होता है और मिथ्यादर्शनादि के न होने पर चौदहवे गुणस्थान मे या सिद्धोंके बंध नहीं होता है यों अन्वय और व्यतिरेककी अनुकूलता घटित हो जाने से उन मिथ्यादर्शनादि को बंध के हेतुपने की सिद्धि हो जाती है ।
ननु च मोक्षकारणत्रं विध्योपदेशात् बंधकाररणपांच विध्यं विरुद्धमित्याशंकायामाह -
यहाँ शंका उठती है कि प्रथम अध्यायमे सबसे प्रथम के सूत्रमे मोक्षके कारणों के त्रिविधपनका उपदेश दिया है अतः बंधके कारण भी तीन प्रकार ही होने चाहिये, इस सूत्रमे पांच प्रकार बंध के कारणोंका निरूपण करना तो पूर्वापर विरुद्ध है । बात यह है कि प्रतिबंधक हो रहे सम्यग्दर्शन, ज्ञान, चारित्र, इन तीन मोक्ष कारणोंसे प्रतिबध्य माने गये बंध के तीन कारण भले ही निवृत्त हो जायेंगे फिर भी बंध के शेष दो हेतुओंसे जीवके कर्मों का बंध होते रहना टल नहीं सकता है अतः या बंध के कारण पांच कहे हैं तो मोक्ष के कारण भी पांच कहने चाहिये थे और यदि मोक्षके कारण तीन कहे जा चुके तो बंध के कारण भी तीन ही गिनाईये, पांच नहीं, ऐसी आशंका प्रवर्तने पर ग्रन्थकार समाधानकारक उत्तर वार्तिक को कह रहे हैं ।