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वाला, 2. निद्रा से वंचित, निद्रारहित, - निद्रा के समय से परे -प्रा बहुत अधिक सोना । अति-अतिनौ (वि० ) [ अतिक्रान्तः नावम् - प्रा० स०] नाव से उतरा हुआ, नाव से भूमि पर आया हुआ । अतिपचा [पञ्चवर्षमतिक्रान्ता प्रा० स०] पांच वर्ष से
अधिक अवस्था की लड़की ।
अतिपतनं [अति + त् + ल्युट् ] उड़कर आगे निकल जाना, भूल, उपेक्षा, अतिक्रमण, अत्यधिक सीमा से बाहर
जाना ।
अतिपत्तिः [ अति + पत् + क्तिन्] 1 सीमा से परे जाना,
समय का बीतना, 2. कार्य का पूरा न होना, असफलता । अतिपत्रः [ अतिरिक्तं बृहत् पत्रं यस्य - ब० स०] सागौन का वृक्ष ।
अतिथिन् (पुं० ) [ पन्थानमतिक्रान्तः प्रा० स०] सामान्य
सड़कों की अपेक्षा अच्छा मार्ग, सन्मार्ग । अतिपर ( वि० ) [ अतिक्रान्तः परान् प्रा० स०] जिसने अपने शत्रुओं को पराजित कर दिया है, -रः वह शत्रु जो शक्ति में बढ़ा चढ़ा हो।
अतिपरिचयः [ प्रा० स०] अत्यधिक जान पहचान या घनिष्टता किंवo - अतिपरिचयादवज्ञा - ( अतिपरिचय से होत है अरुचि अनादर भाय ) ।
अतिपात: [ अति + पत्+घञ्ञ] 1. ( समय का ) बीत जाना
2. उपेक्षा, भूल, अतिक्रमण न चेदन्यकार्यातिपातः श० १: (यदि इस प्रकार दूसरे कर्तव्य की उपेक्षा न की गई), सर्वसम्मत नियम या प्रथाओं का उल्लंघन, 3. आ पड़ना, घटना 4. दुर्व्यवहार या दुष्प्रयोग 5. विरोध, वैपरीत्य ।
अतिपातकः [ अतिपात - स्वार्थे कन् ] बड़ा जघन्य पाप, व्यभिचार । मतिपातिन् (वि० ) [ अति + पत् + णिच् + णिनि ] गति में आगे बढ़ जाने वाला, क्षिप्रतर ( समास में ) रघु० ३ । ३० ।
अतिपात्य ( वि० ) [ अति + पत् + णिच् + यत् ] विलंबित या स्थगित करने योग्य काममनतिपात्यं धर्मकार्य देवस्य - श ५
अतिप्रबंध: [ अतिशयितः प्रबन्धः - प्रा० स०] अत्यंत सातत्य,
बिरुकुल लगा होना; प्रहितास्त्र वृष्टिभिः- रघु० ३।८। अतिप्रगे ( अव्य० ) [ अति + प्र + + के ] प्रभात में
बहुत तड़के, प्रभात काल में - मनु० ४।६२ । अतिप्रश्नः [ अति प्रच्छु + नऊ ] इन्द्रियातीत सत्यता के विषय में प्रश्न, तंग करने वाला तर्कहीन प्रश्न - उदा० बृहदारण्यक उपनिषद् में वालाकि का याज्ञवल्क्य के प्रति ब्रह्म विषयक प्रश्न । अतिप्रसङ्गः, अतिप्रसक्तिः (स्त्री० ) [ अति + प्र+संज्+ वा क्तिन् वा ] 1. अत्यधिक लगाव, 2. घृष्टता
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3. किसी ( व्या० ) नियम का व्यर्थं अधिक विस्तार अर्थात् अतिव्याप्ति 4. बहुत घना संपर्क 5. प्रपञ्च, अलमतिप्रसंगेन - मुद्रा ० १ ।
अतिबल ( वि० ) [ ब० स०] बहुत बलवान् या शक्ति
शाली, -ल: अग्रगण्य या बेजोड़ योद्धा) – लं बड़ा बल, भारी शक्ति - ला एक शक्ति शाली मंत्र या विद्या जिसे विश्वामित्र ने राम को सिखाया । अतिबाला [ अतिक्रान्ता वालां बाल्यावस्थाम् - प्रा० स०]
दो वर्ष की अवस्था की गाय ।
अतिभ (भा) रः [ प्रा० स०] अत्यधिक बोझ, भारी वजन; सा मुक्त कंठं व्यसनातिभारात् चक्रन्द - रघु० १४।६८ अत्यधिक रंज के कारण। सम०-गः खच्चर । अतिभवः [ अति + भू० + णिच् + अच् ] उत्कृष्टता । अतिभीः (स्त्री० ) [ अति + भी + क्विप् ] बिजली, इन्द्र के वज्र की कौंध ।
अतिभूमिः (स्त्री० ) [ प्रा० स०] 1 आधिक्य, पराकाष्ठा, उच्चतम स्वर, मि गम्, या, आधिक्य या पराकाष्ठा तक पहुंचना --तत्र सर्वलोकस्य मिंगतः प्रवाद:-- माल०७, दूर तक प्रसिद्ध - शि० ९७८, १०/८० 2 साहसिकता, अनौचित्य, औचित्य की सीमाओं का उल्लंघन करना - शि० ८ २०, 3 प्रमुखता, उत्कृष्टता । अतिमतिः ( स्त्री० ) -- मानः [ प्रा० स०] अहंकार, बहुत अधिक घमंड, अतिमाने च कौरवाः -- चाण० ५० । अतिमर्त्य मानुष (वि०) अतिमानव । अतिमात्र ( वि० ) [ अतिक्रान्तो मात्राम् - प्रा० स० ] मात्रा
से अधिक, अत्यधिक, अतिशय - सुदुःसहानि - श० ४१३, जिसका बिल्कुल समर्थन न किया जा सके, - मुनिवतैस्त्वामतिमात्रकशिताम् - कु० ५।४८, -- मात्रश: ( अव्य०) मात्रा से अधिक, अतिशय, अत्यधिक ।
अतिमाय (वि० ) [ अतिक्रान्तो मायाम् प्रा० स०] पूर्णतः मुक्त, सांसारिक माया से मुक्त । अतिमुक्त (वि० ) [ अतिशयेन मुक्तः -- प्रा० स०] 1 पूर्ण
रूप से मुक्त 2 बंजर 3 मोतियों (की माला ) से बढ़ कर, क्तः, -- तक: एक प्रकार की लता ( माधवी ) जो आम की प्रिया के रूप में आम के वृक्ष पर लिपटी रहती है।
अतिमुक्तिः (स्त्री० ) अतिमोक्षः [ प्रा० स० ] ( मृत्यु से ) बिल्कुल छुटकारा ।
अतिरंहस् (वि० ) [ अतिशयितं रंहो यस्मिन् - ब० स० ] बहुत फुर्तीला या क्षिप्रतर- सारंगेणातिरंहसा श० १।५ ।
अतिरथः [ अतिक्रान्तोरथम् प्रा० स०] एक अद्वितीय योद्धा जो अपने रथ में बैठा हुआ ही युद्ध करता है ( अमितान्योधयेद्यस्तु संप्रोक्तोऽतिरथस्तु सः) ।
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