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अतिक्रमः [ अति+ऋम्+घा ] 1. सीमा या मर्यादा | अतिचारः अति+चर+घा] 1. मर्यादा का उल्लंघन,
का उल्लंघन, हद से आगे बढ़ना 2. कर्तव्य या 2. आगे बढ़ जाना 3. अतिक्रमण 4. ग्रहों की त्वरित औचित्य का भंग, उल्लंघन, मर्यादा का अतिक्रमण, अवैध गति, ग्रहों का एक राशि पर भोगफल समाप्त हुए प्रवेश, अवज्ञा, चोट, विरोध, ब्राह्मण त्यागो भवता- | बिना दूसरी राशि पर चले जाना। मेव भूतये-महावीर० २।१०, 3. बीतना (समय का)। अतिच्छत्रः, अतिच्छत्रा, अतिच्छत्रका [अतिक्रान्तः छत्रम् गुजरना-अनेकसंवत्सरातिक्रमऽपि--उत्त० ४, 4. प्रा० स०] कुकुरमुत्ता, खुंब; सोया, सौंफ का पौधा । जीत लेना, बढ़ जाता (बहुधा 'दुर' के साथ)- | अतिजन (वि०) [अतिक्रान्तो जनम्] अनुषित, जो आबाद स्वजातिkरतिक्रमा 5. उपेक्षा, भूल, अप्रतिष्ठा 6. भारी न हो।
आक्रमण 7. आधिक्य 8. दुरुपयोग 9. दुर्व्यवहार । अतिजात (वि.) [अतिक्रान्तः जातं-जाति जनकं वा] पिता अतिक्रमणं अति | कम् + ल्युट] आगे बढ़ जाना, समय का से बढ़ा हुआ। बीतना, आधिक्य, दोष, अपराध ।
अतिडीनं [अति+डीङ्+क्त] (पक्षियों की) असाधारण अतिक्रमणीय ( वि०) [ अति क्रम्-+अनीयर | मर्यादा उड़ान ।
भंग करने के योग्य, उपेक्षा करने के योग्य अथवा | अतितराम्-अतितमाम् (अव्य०) [अति + तरप् (तमप)+ उल्लंघन करने के योग्य यं मे सुहृद्वाक्यम्-श० २,
आम्] अधिक, उच्चतर (अपा० के साथ) 2. अत्य
धिक, अत्यंत, बहुत अधिक, बहुत । अतिक्रान्त (वि०) [ अति+क्रम्-|-क्त ] आगे बढ़ा हुआ,
अतितृष्णा [तृष्णामतिक्रम्य-प्रा० सं०] गृध्नुता, अत्यधिक आगं गया हुआ, परे पहुंचा हुआ आदि-सोऽतिक्रान्तःलालच या लालसा, "ष्णा न कर्तव्या-पंच०५-अत्यश्रवणविषयं-मेघ० १०३, बीता हुआ, गया हुआ,
धिक लालच नहीं करना चाहिए। पहला, (--) अतीत विषय, अतीत की बात, अतीत । अतिथिः [अतति गच्छति, न तिष्ठति-अत्+इथिन मनु अतिखट्व (वि० ) [ अतिक्रान्तः खट्वाम्-प्रा० स०] के अनुसार 'यात्री' का शब्दार्थ-एकरात्रं तु निवसन्न
चारपाई रहित, चारपाई के बिना काम चलाने वाला।। तिथिाह्मणः स्मृतः । अनित्यं हि स्थितो यस्मात्तस्मादअतिग ( वि० ) [ अति+गम् । ड] (समास में ) बढ़ने तिथिरुच्यते । मनु० ३।१०२, अभ्यागत (आलं. भी)
वाला, बढ़चढ़कर काम करने वाला, सर्वोत्कृष्ट रहने अतिथिनेव निवेदितम्-श० ४, कुसुमलताप्रियातिथेवाला सर्वलोक मुद्रा० ११२, किमौषधपथातिगैरुपहतो श० ६-प्रिय अथवा स्वागत के योग्य अभ्यागत । महाव्याधिभिः-मुद्रा० ६, औषधियों के प्रभाव को। समः-क्रिया,-पूजा,-सत्कारः,-सत्क्रिया,-सेवा अभ्याअनादृत करने वाले रोगों के द्वारा।
गतों का सत्कारयुक्त स्वागत, आतिथ्यक्रिया, अभ्यागतों अतिगन्ध (वि.) [ अतिशयितो गन्धो यस्य-ब. स.] की सेवा,-धर्मः आतिथ्य करने का अधिकार, अत्यन्त तीक्ष्ण गंध वाला, -ध: गंधक।
अभ्यागतों का सत्कार। अतिगव (वि०) [गामतिक्रान्तः प्रा० स०] 1. अत्यंत मुर्ख,
अतिदानं अति+दा + ल्युट बहत अधिक दान, अत्यधिक बिल्कुल जड 2. वर्णनातीत ।
उदारता,-अतिदाने बलिर्बद्धः-चाण० ५०। अतिगुण (वि०) [गुणमतिक्रान्त: प्रा० स०] 1. बढ़े चढ़े
अतिदेशः अति+दिश् +घञ्] 1. हस्तान्तरण, समगुणों वाला, 2. गुणरहित, निकम्मा, -णः अत्यंत अच्छे
पण, सुपुर्द करना 2. (व्या०) अन्यत्र लागू होने वाली गण।
प्रक्रिया, सादृश्य के कारण प्रक्रिया, एक वस्तु के धर्म अतिगो (स्त्री०) [गामतिक्रम्य तिष्ठति अत्यंत बढ़िया गाय ।
का दूसरी वस्तु पर आरोपण-अतिदेशो नाम इतरअतिग्रह (वि.) [ग्रहम् अतिक्रान्त:-प्रा०स०] दुर्बोध,-हः,
धर्मस्य इतरस्मिन् प्रयोगाय आदेशः (मीमांसा), या, -प्राहः 1 ज्ञानेन्द्रियों के विषय-जैसे त्वचा का स्पर्श
अन्यत्रैव प्रणीतायाः कृत्स्नाया धर्मसंहतेः । अन्यत्र कार्यतः जिह्वा का रस आदि, 2. सत्य ज्ञान 3. आगे बढ़ जाना,
प्राप्तिरतिदेशः स उच्यते। “गोसदशो गवयः" यह दूसरों को पीछे छोड़ देना-आदि।
रूपातिदेश या सादृश्य का निदर्शन है। अतिचमू (वि.) [चम्मतिक्रान्तः-प्रा० स०] सेनाओं के | अतिद्वय (वि.) [द्वयमतिक्रान्त:-प्रा० स०] दोनों से बढ़ा ऊपर विजय प्राप्त करने वाला।
हुआ, अद्वितीय, अनुपम, अतुलनीय, बेजोड़-धिया अतिचर (वि०) [अति- चर अच] बहुत परिवर्तनशील, निबद्धेयमतिद्वयी कथा-का० ५-दोनों (वृहत्कथा और
क्षणभंगुर, -रा कमलिनी का पौधा, पद्मिनी, स्थल- __ वासवदत्ता) से बढ़ी हुई। पद्मिनी, पद्मचारिणी लता।।
अतिधन्वन् (पु०) [अत्युत्कृष्टं धनुर्यस्य] अप्रतिद्वन्द्वी धनुर्धर अतिचरणं [अति+चर+ ल्युट अत्यधिक अभ्यास, शक्ति । या योद्धा। से अधिक करना।
| अतिनिद्र (वि.) [निद्रामतिक्रान्त:-प्रा० स०] 1. बहुत सोने
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