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अतिरभसः [प्रा० स०] बड़ी चाल, द्रुत गमन, हड़बड़ी।। अतिवेल (वि.) [अतिक्रान्तो वेलां मर्यादा कुलं वा-प्रा. अतिराजन् (पुं०) [प्रा० स०] 1 असाधारण या उत्कृष्ट । स०] अत्यधिक, फालतु, सीमारहित,-सं (क्रि० वि०) राजा 2 राजा से बढ़-चढ़ कर ।
1 अत्यधिकता से, 2 बिना ऋतु के, बिना मौसम के। अतिरात्रः[प्रा० स०] 1ज्योतिष्टोम यज्ञ का एक ऐच्छिक | अतिव्याप्तिः (स्त्री०) [ अति-वि+आप+क्तिन् ] 1 किसी भाग 2 रात्रि का मध्य भाग।
नियम या सिद्धात का अनुचित विस्तार 2 प्रतिज्ञा में अतिरिक्त (वि०) [अति+रिच+क्त ] 1 आगे बढ़ा हुआ अनभिप्रेत वस्तु का मिला लेना, 3 लक्षण में लक्ष्य के __2 फालतू 3 अत्यधिक 4 अद्वितीय, उत्तुंग।
अतिरिक्त अन्य अनभिप्रत वस्तु का भी आ जाना, अति (ती) रेकः [अति+रिच+घञ्] 1 आधिक्य, अति- (न्याय में) जिसके फलस्वरूप वह वस्तुएँ भी सम्मि
शयता, महत्ता, गौरव 2 समधिकता, अधिशेष, लित हो जायें जो लक्षण के अनुसार नहीं आनी चाहिए, बाहुल्य 3 अन्तर।
लक्षण के तीन दोषों में से एक। अतिरुच् (पुं०)[अति +रुच् + विवप्] 1 घुटना, (स्त्री०-क) | अतिशयः [ अति+शी+अच् ] 1 आधिक्य, प्रमुखता, एक अत्यन्त सुन्दरी स्त्री।
उत्कृष्टता; वीर्य रघु० ३१६२, तस्मिन् विषानाअतिरो (लो) मश (वि०) [ अति+रो (लो) मन्+श ] तिशये विधातुः-रघु०६।११; 2 श्रेष्ठता (गुण, पद
बहुत बालों वाला, बहुत रोम वाला,-शः 1 एक और परिमाण आदि की दृष्टि से); समास में प्रायः जंगली बकरा 2 बड़ा बन्दर।
विशेषणों के साथ प्रयुक्त होने पर "अधिकता के अतिलंघनं [अति+लंघ+ ल्युट्] 1. अत्यधिक उपवास साथ" अर्थ होता है-आसीदतिशयप्रेक्ष्य:---रघु०१७॥ रखना 2. अतिक्रमण ।
२५, (वि०) श्रेष्ठ, प्रमुख, अत्यधिक, बहुत बड़ा, अतिलंधिन् (वि.) [अति+लंघ+णिनि गलतियां या बहुल। सम-उक्तिः (स्त्री०) 1 बढ़ाकर या अतिभूलें करने वाला।
शयोक्तिपूर्ण ढंग से कहे हुए वचन, अतिरंजना 2 अतिवयस् (वि०) [अतिशयितं वयः यस्य-व० स०] बहुत अलंकार जिसके सा० द. कार ने ५ भेद तथा काव्य बूढा, वृद्ध, अधिक आयु का।
प्रकाशकार ने ४ भेद माने हैं। अतिवर्णाश्रमिन् (पुं०) [प्रा० स०] जो वर्ण और आश्रमों | अतिशयन (वि.) [ अति+शी+ल्युट् ] आगे बढ़ने वाला की मर्यादा से परे हो।
(समास में), बड़ा, प्रमुख, बहुल-नं आधिक्य, बहुतायत, अतिवर्तन [अति+वृत्+ल्युट] क्षम्य अपराध, सामान्य बहुलता। ___ अपराध, दण्ड से मुक्ति-इस प्रकार के दस अपराधों | अतिशयाल (वि.) [अति +शी+आलुच ] आगे बढ़ जाने का वर्णन मन ने किया है-मनु० ८।२९० ।
या बढ़-चढ़ कर रहने की प्रवृत्ति वाला। अतिवतिन् (वि०) पार करने वाला, दूसरों से आगे निकलने अतिशयिन् (वि.) [ अति+शी+णिनि ] 1 श्रेष्ठ, बढ़िया,
वाला, आगे बढ़ने वाला, अतिक्रमण करने वाला, प्रमुख-इदमुत्तममतिशयिनि व्यंग्ये वाच्याद ध्वनिर्बधैः उल्लंघन करने वाला।
कथितः--काव्य० १, विक्रम० ५।२१, 2 अत्यषिक, अतिवादः [अति+व+घा] अतिकठोर, गाली और |
सीलपट 1 उत्कृष्टता, श्रेष्ठता । स्तितिक्षेत-मनु० ६।४७ ।।
अतिशायिन (वि.) [अति+शी+णिनि ] आगे रहने वाला, अतिवादिन् [अति+व+णिनि] बहुत बोलनेवाला,
आगे बढ़ जाने वाला 2 अत्यधिक । वाग्मी।
अतिशेषः [अति+शिष् +अच् ] अवशिष्ट भाग, बचा अतिवाहनं [अति+-वह +णिच+ ल्युट] 1. बिताना, यापन
हुआ भाग (जैसे कि समय का), कुछ अवशेष । 2. बहुत अधिक परिश्रम करना या बहुत बोझा उठाना | अतिश्रेयसिः [ श्रेयसीमतिकान्त:--प्रा. स.] सर्वोत्तम 3. प्रेषण, भेजना, छुटकारा पाना।
स्त्री से श्रेष्ठ पुरुष । अतिविकट (वि.) [प्रा० स०] भीषण–ट: दुष्ट हाथी। अतिश्व (वि.) [ श्वानमतिक्रान्त:-प्रा० स०] 1 बल में अतिविषा [प्रा० स०] अतीस नामक विषली औषधि का कुत्ते से बढ़ा हुआ (जैसे कि सूबर) 2 कुत्ते से भी गया पौधा।
बीता; ---श्वा सेवा। अतिविस्तरः [प्रा० स०]बहुत अधिक फैलाव, व्यापकता। अतिसक्तिः (स्त्री०) [ अति+ष+क्तिन् । घनिष्ठ संपर्क अतिवृत्तिः (स्त्री०) [अति+वृत् + क्तिन्] आगे बढ़ जाना, या सान्निध्य, भारी आसक्ति । अतिक्रमण, अतिरंजना।
अतिसंघानं [ अति+सं+था+ल्युट ] छल करना, अतिवृष्टिः (स्त्री०) [अति+वृष् +क्तिन्] अत्यधिक या भारी घोखा देना,-परातिसंघान श० ५।२५, चालाकी,
वर्षा, ऋतु विषयक ६ विपत्तियों में से एक; दे० ईति ।। जालसाजी।
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