________________
जाएगी। ये तो जब तक उसे मान देंगे, उसका स्वीकार कर लेंगे, उसकी सलाह मानेंगे, तब तक बुद्धि दखलंदाजी करती ही रहेगी।
बुद्धि इमोशनल करवाती है। इमोशनल होने पर जागृति नहीं रहती। यदि इमोशनल बिल्कुल भी नहीं हुए तो वहाँ पर ज्ञाता-दृष्टापना संपूर्ण रूप से रहा, वही साहजिकता है। उसके काम हन्ड्रेड परसेन्ट होते हैं। चंदूभाई क्या कर रहे हैं उसे देखते रहना है, उनके ज्ञाता-दृष्टा रहना है। यदि सुधारने जाएँगे, करने जाएँगे, तो बिगड़ेगा और यदि देखते रहेंगे तो सुधरेगा। एक अवतार का सारा हिसाब लेकर आए हैं। आटा तैयार लेकर आए हैं, उसे फिर से पीसने की ज़रूरत नहीं है। 'मैं कर्ता हूँ' उसी पागलपन की वजह से बिगड़ जाता है। वर्ना, इस शरीर में तो बहुत ज़बरदस्त साइन्स (वैज्ञानिक रूप से) चलता ही रहता है। दखल करने की ज़रूरत ही नहीं।
बुद्धि तो भेद करवाती है, यह अच्छा और यह खराब, वह इमोशनल करवाती है। वह काम की नहीं है। जागृति से जो भेद हुए हैं तो वे काम आएँगे कि 'यह मैं हूँ' और 'यह मैं नहीं हूँ'। यह हितकारी है और यह हितकारी नहीं है, इस तरह से सूझ पड़ती ही रहती है। वह काम आती है। बुद्धि अजंपा (अशांति, बेचैनी) करवाती है। प्रज्ञा में अजंपा नहीं होता। यदि ज़रा भी अजंपा हुआ तो समझना कि बुद्धि का चलन है। सूर्य का उजाला होने के बाद मोमबत्ती की ज़रूरत नहीं रहती न! उसी प्रकार से आत्मा के ज्ञानप्रकाश के बाद बुद्धिप्रकाश की ज़रूरत नहीं रहती।
___महात्मा भरे हुए माल के परिणाम के समय उलझन में पड़ जाते हैं, वहाँ पर ज्ञान की जागृति से उन्हें मोड़ लें कि ये तो पराए परिणाम हैं, डिस्चार्ज हैं और उनका साथ न दें, उन्हें देखते ही रहे, तो वे खुद मुक्तता का अनुभव करेंगे। इस प्रकार की जागृति से चित्त की शुद्धि होती ही रहती है और चित्त की शुद्धि संपूर्ण रूप से होने तक यह योग जमाना है।
सहज अहंकार से, डिस्चार्ज अहंकार से यह संसार सहज रूप से चले ऐसा है। लेकिन यह जीवित अहंकार लड़ता है, झगड़ता है और