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'सहज' को देखने से, प्रकट होती है सहजता
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दादाश्री : वैसा देखने में हर्ज नहीं है लेकिन वैसा हमेशा नहीं देखता। वह देखने का सहज भाव टूट जाता है।
प्रश्नकर्ता : फिर कहेगा, मेरा फोटो ले रहा है।
दादाश्री : हाँ, अर्थात् जिस व्यक्ति की फोटो ले रहे हो तब यदि वह सहज रहता हो न तो उसके फोटो बहुत अच्छे आते हैं।
प्रश्नकर्ता : ऐसा नियम है ?
दादाश्री : सभी नियम ही हैं न । जगत्, सभी नियम से ही चलता है न!
प्रश्नकर्ता : फिर ऐसा भी कहते हैं, कि मेरा यह फोटो कितना सहज है! यह मेरा नैचुरल फोटो है !
दादाश्री : एक आदमी तो मुझसे कहने लगा, कि ऐसे तो डेढ़ डॉलर फीस लेता था और वहाँ पर ही फोटो तैयार करके तुरंत दे देता था। वह कहने लगा, मुझे इनका फोटो लेना है तो उसने तुरंत ही फोटो खींचकर मुझे दे दी और पैसे नहीं लिए! जिसे दादा की फोटो लेना हो वह अपनी ग़रज़ से लेता होगा, क्या! उसके बाद फोटो अच्छे आते हैं !
लेकर !
फिर...
अब तो नीरू बहन भी फोटोग्राफर बन गए हैं न, कैमरा वगैरह
प्रश्नकर्ता : तब आप कहते हो, फोटोग्राफर बन गए हैं, इसलिए
दादाश्री : ऐसा तो कहता हूँ, वे सभी बातें तो मज़ाक के लिए। वह थोड़ी-बहुत तो हँसी-मज़ाक चाहिए न ?
प्रश्नकर्ता : चाहिए ।
दादाश्री : इन भाई के साथ कितना हँसी-मज़ाक करता हूँ ! नहीं करता? आपको पता चलता है न कि ये मज़ाक करते हैं ? थोड़ा-बहुत तो करना पड़ता है न ? मज़ाक तो होती है न! हँसी-मज़ाक के बगैर दुनिया में किस तरह से अच्छा लगेगा ? तेरे साथ नहीं करता ?