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* विकल्पी स्वभाव वालों को तो खुद कुछ भी नहीं करना चाहिए। उसे तो किसी सहज व्यक्ति को ढूँढ निकालना चाहिए और वे जैसा कहे वैसा करना चाहिए! * यदि कुदरत के संचालन के अनुसार जीएँगे तो जीवन अच्छे से जी पाएँगे। भीतर से जो प्रेरणा होती है उसी अनुसार सहज भाव से रहना चाहिए, लेकिन दखल नहीं करना चाहिए। * लोग कहते हैं कि प्रयत्न किए बगैर कैसे होगा! अरे प्रयत्न करने का तो होता ही नहीं है। प्रयत्न तो सहज रूप से हो ही जाता है। जैसे साँप दिखते ही तुरंत कूद जाते हैं - वहाँ यदि आप प्रयत्न करने जाओगे तो साँप के ऊपर ही पैर आ जाएगा। प्रयत्न करने से तो संडास भी नहीं होता। ★ इस संसार में जितना सतही रहकर देखने में आता है उतना काम अच्छा होता है। उपलक अर्थात् साहजिक। * यह जगत् निरंतर हितकारी है, यदि सहज भाव से चलो तो जगत् आपको आगे ही ले जाने वाला है, लेकिन लोग स्वच्छंद से चलते हैं। * जिस सुख के लिए हमें कोई प्रयत्न नहीं करना पड़ता, किसी भी जगह पर सहज रूप से वह प्राप्त होता ही रहता है। निरंतर होता रहता है। दुःख देखने में ही नहीं आता, उसे सनातन सुख कहते हैं! * सहज भाव से बोलने में हर्ज नहीं है लेकिन अभिप्राय नहीं देना। * जिसके लिए जितने अभिप्राय बंध गए, उतने अभिप्रायों को यदि हम छोड़ देंगे तो सहज हो जाएँगे। जिसके बारे में अभिप्राय बंध गए हो, वे हमें कचोटते ही रहते हैं और यदि उन अभिप्रायों को हम छोड़ देंगे तो सहज हो जाएँगे।
* बातचीत में परिणाम ऊँचे-नीचे नहीं होने चाहिए। सहज भाव से बातचीत करो।
★ विचार करना, वह पाप है और विचार नहीं करना, वह भी पाप है। विचार तो सहज रूप से आना चाहिए जैसे कि हमें कोई बुलाने आता है उसी प्रकार से विचारों को आने देना चाहिए।