Book Title: Sahajta Hindi
Author(s): Dada Bhagwan
Publisher: Dada Bhagwan Aradhana Trust

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Page 200
________________ दादाश्री के आप्तवचन * ज्ञानी की आज्ञा सहज होती है। खुद को हेल्प फुल होती है, मदद करती है और रक्षा भी करती है। * अज्ञान को नहीं पढ़ना है, अज्ञान तो सहज भाव से आता ही है- ज्ञान को पढ़ना है। * ये स्त्रियाँ बोलती हैं, वह सहज प्रकृति है जबकि पुरुष सोचसमझकर बोलते हैं। सहज अर्थात् मूल स्वभाव। किसी को भी अड़चन नहीं हो, वह सहज प्रकृति है और विकृति अर्थात् विकृत प्रकृति। ये स्त्रियाँ जब बिफर जाती हैं तो बेहिसाब बोलती है, वह विकृत प्रकृति है। * स्त्रियों में अज्ञान सहजता होती है - दूसरी समझ पूर्वक की सहजता होती है और तीसरी ज्ञान सहजता है। * सहज भाव से निकली हुई प्रकृति सहज है। किसी और को नुकसान करे या किसी जीव को दुःख हो जाए, उतनी ही प्रकृति मोक्ष के लिए बाधक है। अन्य चाहे जैसी भी प्रकृति हो, देर से उठना हुआ, जल्दी उठ गया, अमुक होता है, अमुक नहीं होता, ऐसी प्रकृति मोक्ष के लिए बाधक नहीं है। * बुद्धि द्वंद्व करने वाली है और इमोशनल करने वाली है, बुद्धि से ही जुदाई है, बुद्धि ही भेद कराने वाली है। बुद्धि से ज्ञान उत्पन्न होता है, लेकिन विज्ञान (आत्मज्ञान) उत्पन्न नहीं होता। विज्ञान तो सहज उत्पन्न होता * सहज स्वाभाविक बुद्धि हर एक में होती है लेकिन यदि स्पर्धा में पड़े तो बुद्धिशाली को भी बुद्ध बना देती है। ★ उपाय नहीं करना, वह भी अहंकार है और उपाय करने का प्रयत्न करना, वह भी अहंकार है। 'निरुपाय उपाय' होता है उसे होने देना। सहज रूप से उपाय होने देना। 'हमारा' सहजासहज उपाय हो जाता है। * जिसे खुद को कर्तापन का भान नहीं, वह साहजिक है।

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