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'सहज' को देखने से, प्रकट होती है सहजता
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दादाश्री : हाँ, उसमें तो निरोध करने का प्रयत्न करना है जबकि इसमें तो सहज ही आती है, वापस आती है। पहले जो चित्तवृत्तियाँ बाहर भटकती रहती थीं वे सभी वापस आती हैं। जाती तो हैं लेकिन जाने के बाद फिर वापस आ जाती हैं। अपने आप नहीं आती? हमें हाँकने नहीं जाना पड़ता। जबकि उसमें तो हाँकने जाएँगे या बुलाने जाएँगे तो भी वापस नहीं आती।
अहंकार रहित ज्ञानी प्रश्नकर्ता : ज्ञानी पुरुष को दुःख का अनुभव होता है, क्या?
दादाश्री : ज्ञानी होम डिपार्टमेन्ट (आत्मा) में ही रहते हैं इसलिए दुःख का अनुभव नहीं होता। वे मोक्ष स्वरूप ही रहते हैं। वे फॉरेन (अनात्मा) में घुसते ही नहीं। उनका फॉरेन के साथ व्यवहार ही नहीं रहता। जिनका सचल व्यवहार बंद हो गया है। सचल हैं, फिर भी सचल साहजिक रूप से चलता रहता है। जिनकी सभी अवस्थाएँ साहजिक हैं, खाना, पीना, बैठना और उठना, सभी सहज हैं। जिनमें अहंकार की ज़रूरत नहीं पड़ती, ऐसे सहज हैं।
प्रश्नकर्ता : अगर शरीर में वेदना हुई हो तो ज्ञानी पुरुष भी चीखपुकार करते हैं?
दादाश्री : ज्ञानी पुरुष चीख-पुकार नहीं करते, शरीर चीख-पुकार करता है और अगर शरीर अगर चीख-पुकार नहीं करेगा तो वे ज्ञानी नहीं होंगे। दूसरे लोग समझ जाएँगे इसलिए अज्ञानी अहंकार करके दबाता है।
प्रश्नकर्ता : उसके अहंकार से दबाता है ?
दादाश्री : अहंकार से सबकुछ बंद हो जाता है। अहंकार तो बहुत काम करता है। जिनका अहंकार चला गया, वे ज्ञानी। इनसे (नीरू बहन से) पूछो तो सही कि इन्जेक्शन देते समय हमें क्या होता है ? उस भाग को शून्य करना पड़ता है ? बेहोश। अहंकार चला गया इसीलिए। वर्ना, जब मेरा अहंकार था न तब तो मैंने एक माचिस की तीली (दियासलाई)