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सहजता
आँसू थे और निकालते समय वेदना के आँसू थे और वे आँसू आत्मा के नहीं थे। यह देह आँसू वाली थी। मैंने कहा, यदि आँसू नहीं आएँ तो हमें समझ जाना है कि यह पागल हो गया है या तो फिर यह भाई अहंकारी है, पागल है। सभी क्रियाएँ साहजिक होती हैं। जो ज्ञानी हैं, उनके शरीर में सभी क्रिया साहजिक होती हैं!
अब, यह बात लौकिक ज्ञान से बहुत अलग है इसलिए जल्दी समझ में नहीं आती! यह बात फिट नहीं होती न! यह अलौकिक बात
सहज आत्मा वह स्व-परिणामी
इसलिए कृपालुदेव ने कहा है कि ज्ञानी पुरुष को यदि सन्निपात हो जाए, लोगों को बहुत सारी गालियाँ देते हों तो भी तू अन्य कुछ नहीं देखना। इन बाह्य लक्षणों से उन्हें नहीं देखना। वे संयोगाधीन हैं। तू असंयोगी को देखना, वे तो वही के वही हैं। कृपालुदेव ने बहुत सारी बातों में सावधान किया है।
प्रश्नकर्ता : यह बात बहुत सूक्ष्म है, महावीर भगवान को कील ठोकी और यदि वे रोएँ नहीं तो वह अहंकार है।
दादाश्री : हाँ, जबकि भगवान ने तो कील निकालते समय ही ओ... ओ... करके चीख-पुकार की तब सच्चे पुरुष को जाना कि ये तो सचमुच भगवान ही हैं। सहज में हैं, साहजिक हैं जबकि अहंकारी साहजिकता में नहीं रहते।
प्रश्नकर्ता : उन्हें दुःख होता हो फिर भी दुःख का असर वे नहीं होने देते, खास रूप से दिखने नहीं देते।
दादाश्री : वह अहंकार है न! अहंकार तो क्या नहीं करता, वहाँ ? अहंकार, वह तो बहुत शक्ति वाला है। प्रकट नहीं होने देता कि मुझे दुःख था। महावीर को ऐसा नहीं था वे तो सहज स्वभाव में थे। उनके मन में ऐसा नहीं रहता कि यदि अभी मैं रोऊँगा तो इन लोगों को यह मेरा ज्ञान गलत लगेगा। भले ही गलत लगे, वे तो सहजता में ही रहते हैं।