Book Title: Sahajta Hindi
Author(s): Dada Bhagwan
Publisher: Dada Bhagwan Aradhana Trust

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Page 197
________________ [11] विज्ञान से पूर्णता की राह पर प्रकट होता है आत्मऐश्वर्य, सहजपने में से सहज अर्थात् क्या? जैसा कि पानी जहाँ ले जाए वहाँ जाए। पानी फिर इधर चला तो इधर चला जाए, पोतापणुं नहीं। पानी जहाँ ले जाए वहाँ खुद चले जाए ऐसा। यदि एक मिनट भी सहज हो गया तो उतना वह भगवान के पद में आ गया। संसार में कोई सहज हो ही नहीं सकता न! एक मिनट के लिए भी नहीं हो सकता। सहज तो, आप इस अक्रम विज्ञान से हुए हो! नहीं तो वकालत करते-करते सहज होता होगा? क्या वे वकील सहज होते होंगे? फिर केस लेकर बैठते हैं न? लेकिन देखो सहज हो गए न ! यह भी आश्चर्य है न! यह सब से बड़ा चमत्कार कहलाता है। फिर भी हम ऐसा कहते हैं कि चमत्कार जैसी कोई चीज़ नहीं है। लोगों को समझ में नहीं आने की वजह से, वे इसे चमत्कार कहते हैं। बाकी यह सब साइन्टिफिक सरकमस्टेन्शियल एविडेन्स हैं ! अभी तो, आपको यह जो विज्ञान दिया है, वह अब आपको निरंतर सहज ही कर रहा है और यदि सहज हो गए तो मेरे जैसे हो जाओगे। मेरे जैसे हो गए अर्थात् ब्रह्मांड के ऊपरी कहलाओगे। दादा भगवान को ब्रह्मांड के ऊपरी कहा जाता है। उसका क्या कारण है कि वे इस देह के मालिक नहीं हैं। अर्थात् इस देह का मालिक कौन है? तब कहे कि यह पब्लिक ट्रस्ट है। जब से ज्ञान दिया तब से सहजता बढ़ती जाती है जबकि वह (असहजता) कम होती जाती है। इन सब का मूल सार क्या है? अंतिम

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