Book Title: Sahajta Hindi
Author(s): Dada Bhagwan
Publisher: Dada Bhagwan Aradhana Trust

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Page 194
________________ 'सहज' को देखने से, प्रकट होती है सहजता १५५ शरीर ऊँचा-नीचा होता है, यदि कोई जलाए तो हिल जाता है, वह सब देह का सहज स्वभाव है और आत्मा पर-परिणाम में नहीं, वह सहज आत्मा है। सहज आत्मा अर्थात् स्व-परिणाम। जो वेदना में स्थिर, वह अहंकारी प्रश्नकर्ता : ऐसा कहा जाता है कि जब गजसुकुमार के सिर पर मोक्ष की पगड़ी बाँधी, तो उस समय गजसुकुमार आत्मा की रमणता में थे, अर्थात् उन पर उस पगड़ी का असर नहीं हुआ? दादाश्री : यदि पगड़ी का असर नहीं हुआ होता तो मोक्ष नहीं होता। उस पगड़ी का असर हुआ। सिर जल रहा था उसे देखते रहे। उसमें ऐसी समता रखी कि 'मैं शुद्धात्मा हूँ, यह अलग है' वैसा देखा, लेकिन उन्हें जो समता रही वही मोक्ष है। भीतर जलन हो, सबकुछ पता चले, यदि पता नहीं चले तो वह बेहोशी है। कितने लोग ऐसे होते हैं कि इस तरह जलकर मर जाते हैं! तो लोग आकर मुझसे कहते हैं कि ये तो ज़रा भी हिले नहीं? मैंने कहा, अहंकार का कंकड़ है। ज्ञानी पुरुष तो यदि हाथ जलता हो तो भी रोते होते हैं, सबकुछ करते हैं। यदि वे रोते नहीं हो तो वे ज्ञानी ही नहीं हैं। उनमें सहज भाव होता है। ये तो अहंकार के कंकड़ हैं। ऐसे कंकड़ डालो तो भी कुछ नहीं होता। वे किसी को पता नहीं चलने देते, ऐसे लोग होते हैं। ऐसा सब नहीं चलेगा। ऐसा फोकट का इलाज नहीं चलेगा। ये दादा आए हैं। हाँ, अभी तक चला। यह तो जैसा है वैसा ही कहना है। अभी तक तो नकली पैसा निकलवाया होगा वही चला होगा लेकिन अब, यहाँ पर नहीं चलेगा। देखना है मात्र एक पुद्गल को ही प्रश्नकर्ता : दादा ने कहा है, 'तेरी ही किताब पढ़ा कर, दूसरी किताब पढ़ने जैसी नहीं है। यह खुद की जो पुद्गल (जो पुरण और गलन होता है) की किताब है, मन-वचन-काया की उसे ही पढ़, दूसरी पढ़ने जैसी नहीं है।'

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