Book Title: Sahajta Hindi
Author(s): Dada Bhagwan
Publisher: Dada Bhagwan Aradhana Trust

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Page 189
________________ १५० सहजता दादाश्री : अहंकार के बिना तो इस जमीन पर सो सकते हैं, ऐसा सब होता ही नहीं न! सहज, क्या चीज़ है कि जमीन आई तो जमीन पर, गद्दा आया तो गद्दे पर, यदि आप कहो कि नहीं दादा, इन तीन गद्दों के ऊपर आप सो जाओ तो हम मना नहीं करेंगे। यह सापेक्ष चीज़ है कि जिसमें मोक्ष जाते-जाते ऐसे सब स्टेशन आते हैं । इसलिए कुछ छोड़ने जैसा नहीं है क्योंकि मूल स्टेशन को जानने के बाद यह छोड़ने जैसा नहीं है। यह गलत नहीं है लेकिन अभी तो इससे बहुत आगे जाना है। यह कोई अंतिम स्टेशन नहीं है । जैसे कि कोई मानेगा कि सूरत, वह बॉम्बे सेन्ट्रल है, ऐसे मानकर वह सूरत में खड़ा रहकर बात करेगा, ऐसी यह बात है I ज्ञानी के ज्ञान से छुटकारा प्रश्नकर्ता : योगियों को ये सब चक्र सिद्ध हो जाते हैं, उसके बाद चित्त बाहर भटकने जाता है, क्या ? दादाश्री : चित्त का भटकना कब बंद होता है ? यदि ज्ञानी के पास से ज्ञान लेकर ज्ञानी की आज्ञा का पालन करें तो चित्त का भटकना बंद हो जाता है। I प्रश्नकर्ता : इसका अर्थ ऐसा हुआ कि जब तक वे 'ज्ञानी पुरुष' के पास नहीं आते तब तक उनकी चित्तवृत्ति कभी भी वापस नहीं आएगी ? दादाश्री : जब तक 'ज्ञानी' नहीं मिलेंगे तब तक कुछ नहीं बदलेगा। यह सब माथापच्ची की, वह बेकार है । जब तक 'ज्ञानी पुरुष' नहीं मिलेंगे तब तक भूखे बैठे रह सकते हैं क्या ? यदि कंट्रोल के गेहूँ मिले तो उसे खाना। जो गुरु मिला उसी गुरु के पास बैठना । ऐसे भूखे नहीं रह सकते। बाकी, यदि ज्ञानी मिलेंगे तो छुटकारा होगा । उसके अलावा चाहे कहीं भी जाओ लेकिन छुटकारे का रास्ता नहीं है । प्रश्नकर्ता : पतंजलि ने योग की व्याख्या में कहा है कि योग अर्थात् चित्तवृत्तियों का निरोध और आप ऐसा कहते हो कि वे फिर अपने आप वापस आती है। उसमें प्रयत्न है और इसमें प्रयत्न नहीं है।

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