Book Title: Sahajta Hindi
Author(s): Dada Bhagwan
Publisher: Dada Bhagwan Aradhana Trust

View full book text
Previous | Next

Page 183
________________ १४४ सहजता जब आप फोटो खींचते हो तब ऐसा कहते हो कि आप हाथ जोड़ो तो हम हाथ जोड़ते हैं, बस। मुझे और क्या? क्योंकि हमें मन में ऐसा नहीं रहता कि यह मेरा फोटो ले रहा है, वर्ना, विकृत हो जाएँगे। हम सहज में ही रहते हैं। बाहर चाहे कितने भी फोटो लेने के लिए आए तो भी वे फोटो वाले भी समझ जाते हैं कि दादा सहज में ही हैं। वे तुरंत ही बटन दबा देते हैं। फोटो मूर्ति का, खुद अमूर्त में प्रश्नकर्ता : फोटो लेते समय, आपको अंदर क्या रहता है? क्योंकि यह तो मेरी फोटो ले रहा है इसलिए जब आप ऐसे स्थिर रहते हैं, तब आपको अंदर में कैसा परिणाम रहता है? उस समय आपका उपयोग कैसा रहता है? दादाश्री : कुछ लेना-देना नहीं। कुछ हुआ ही नहीं हो, ऐसा! उसे खींचने वाले को ऐसा न लगे, कि मेरा फोटो खराब दिखे ऐसा किया, इसलिए मैं उसके सामने देखता तो हूँ, उतना ही और थोड़ा हाथ जोड़ लेता हूँ। उसकी मेहनत व्यर्थ नहीं जानी चाहिए न! मेरे लिए तो सहज ही। यदि वह कहेगा, ऐसे बैठो, तो मैं वैसा बैलूंगा। वैसा भी करूँगा। जब आप सहज हो जाएँगे तब आपका भी फोटो लिया जाएगा। सहज होना चाहिए। फोटोग्राफर सहज को ढूँढता है। ये सभी सौ लोग बैठे हों उनमें सहज कौन है, उसे फोटोग्राफर ढूँढता है। वह ढूँढता ही है। फोटोग्राफर को उसका अनुभव रहता है। फोटोग्राफर समझ जाता है कि इन सभी में इनका फोटो लेना चाहिए, मैं अभी आपके साथ नीचे बैलूंगा और फिर फोटोग्राफर से कहूँगा कि इन सभी में से ढूँढ लो कि किसका फोटो खींचने जैसा है? तब कहेगा, इनका लेने जैसा है। वह स्थिरता देखता है। फोटोग्राफर हमेशा स्थिरता देखता है। कितनी स्थिरता और सहजता है, वह देखता है। आप सहजता समझ गए? आप भी ऐसे अकड़ जाते हो या नहीं? प्रश्नकर्ता : हो जाता हूँ। फिर मुझे कोई देख रहा है या नहीं, ऐसा सब तरफ देखता रहता हूँ।

Loading...

Page Navigation
1 ... 181 182 183 184 185 186 187 188 189 190 191 192 193 194 195 196 197 198 199 200 201 202 203 204