Book Title: Sahajta Hindi
Author(s): Dada Bhagwan
Publisher: Dada Bhagwan Aradhana Trust

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Page 186
________________ 'सहज' को देखने से, प्रकट होती है सहजता १४७ हमारा सब सहज होता है इसलिए सहजता पर जाना है। यह सहजता का मार्ग 'नो लॉ लॉ,' सहजता पर ले जाने के लिए है। यदि लॉ (नियम) होगा तो सहजता कैसे होगी? अभी मैं यहाँ बैठा हूँ, ऐसे नहीं बैठेगा। ऐसा कुछ आया हो न तो स्पर्श नहीं करेगा। उन सभी बातों में साहजिकता नहीं है। साहजिक अर्थात् जैसे अनुकूल आए वैसे रहे। दूसरे विचार ही नहीं आए कि ये लोग मुझे क्या कहेंगे और ऐसा-वैसा कुछ भी नहीं रहता। सहजता, ज्ञानी की प्रश्नकर्ता : दादा सभी को जो प्रसादी देते हैं न, जूते से वह... दादाश्री : वह सब सहज भाव से। सहज भाव अर्थात् 'मैं मारता हूँ' वह भान नहीं रहता, 'मैं मारता हूँ' वह ज्ञान नहीं रहता और 'मैं मारता हूँ' वह श्रद्धा नहीं रहती, उसे सहज भाव कहते हैं। हम सहज भाव से मारते हैं, इसलिए किसी को दुःख नहीं लगता! प्रश्नकर्ता : सहज भाव से चाटा मारना, वह ज्ञानी के अलावा और कोई मार सकेगा क्या? दादाश्री : हाँ, यदि सहज भाव होगा तो मार सकेगा। प्रश्नकर्ता : यदि ज्ञानी के अलावा कोई और चाटा मारेगा तो सामने वाले को दुःख हुए बगैर रहेगा ही नहीं। दादाश्री : यदि दुःख होता है तो फिर वह सहजता नहीं है। उसमें कुछ गलत है, वर्ना, दु:ख होना ही नहीं चाहिए। यह हमारी सारी क्रिया सहज होती हैं. डामेटिक। वह हो गई फिर कुछ नहीं। लेना भी नहीं और देना भी नहीं। आज कौन सा वार है उसका भी पता नहीं। आप कहते हो कि यह वार हुआ तो हम 'हाँ' कहेंगे और आप भूल से हम से ऐसा कहने का कहो कि आज बुधवार हुआ, तो हम भी बुधवार ही कहेंगे। हमारा ऐसा नहीं लेकिन सहज भाव। हम अमरीका गए, वहाँ पोटली के जैसे गए और पोटली के जैसे आ गए। अमरीका में सभी जगह गए, वहाँ भी ऐसा और सभी जगह

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