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'सहज' को देखने से प्रकट होती है सहजता
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करने से नहीं, देखने से होता है सहज
एक ही चीज़ कहने में आती है कि भाई, आत्मा तो सहज है, अब तू पुद्गल को सहज कर । अब, 'सहज कैसे होगा ?' सहज को देखने से सहज हो जाएगा। 'ज्ञानी' को देखने से, उनकी सहज क्रियाओं को देखने से सहज हो जाएगा । तब कहे, 'कॉलेज में नहीं सीख सकते ?' कॉलेज में नहीं आएगा क्योंकि उन प्रोफेसरों को भान ही नहीं है, तो कैसे आएगा ? यह ज्ञान शब्द रूप नहीं है, यह तो सहज क्रिया है ।
जैसे कि चोर के पास किसी बच्चे को रखा हो तो वह छः महीने में तो फर्स्ट क्लास चोर बन जाएगा और यदि बीस साल तक उसके (चोरी करने के) कॉलेज में पढ़ने जाएगा तो भी नहीं आएगा । इसी तरह यदि ज्ञानीपुरुष के पास रहेगा तो अपने आप ही सहजता उत्पन्न हो जाएगी ।
अनादिकाल से अपार चंचलता उत्पन्न हो गई है। वह चंचलता धीरे-धीरे स्थिर होते-होते फिर सहजता उत्पन्न हो जाएगी। यदि मुझे कोई गाली दे रहा हो उस समय मेरी सहजता को देखकर आपके मन में ऐसा होता हो कि ‘ओहोहो!' तो वैसा आपको तुरंत आ जाएगा। देखने से ही आ जाएगा। उसके बाद यदि आपको गाली दे तो भी सहजता आ जाएगी। वर्ना, लाख जन्मों में भी सीख ही नहीं पाएँगे । ज्ञानी पुरुष के पास रहने से ही सारे गुण प्रकट हुआ करते हैं, अपने आप, सहज रूप से प्रकट होते हैं
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अक्रम विज्ञान जो कहता है उसका भावार्थ भी इतना ही है कि सहज होता जाता है।