Book Title: Sahajta Hindi
Author(s): Dada Bhagwan
Publisher: Dada Bhagwan Aradhana Trust

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Page 180
________________ नहीं करना कुछ भी, केवल जानना है १४१ दादाश्री : नहीं, दखलंदाज़ी ही नहीं । प्रश्नकर्ता : अर्थात् जब उसका योग्य समय आएगा तब चला जाएगा ? दादाश्री : अपने आप ही चला जाएगा। भले ही, लोग ऐसा कहना हो तो ऐसा कहेंगे वैसा कहना हो तो वैसा कहेंगे, लेकिन यदि हम बखेड़ा करेंगे तो सब दखल हो जाएगा। प्रश्नकर्ता : लेकिन दादा, आपने तो उस पेड़ के जड़ में वह दवाई डाल दी है न, इसलिए पत्ते वगैरह दिखाई देते हैं लेकिन सभी गिर रहे हैं न! अब तो धीरे-धीरे हमारे सभी तिजोरी में भरा हुआ माल खाली हो जाएगा। दादाश्री : हाँ, अर्थात् तिजोरी तो सारे खाली ही हो जाएँगे न ! हमारी मोक्ष में जाने की इच्छा हुई इसलिए यह संसार भाव चला गया, अपने आप ही चला गया। हमें यहाँ से मामा की पोल में जाना है, उस तरफ चले गए तो फिर हम टावर की तरफ नहीं जाएँगे, वह तय हो गया। यानी इस तरफ मोक्ष की ओर चले तो उन सब का त्याग ही हो गया, भाव त्याग ही रहा करता है । अर्थात् अपने आप चला जाना चाहिए। 'चला जाना' शब्द समझ में आया आपको ? I प्रश्नकर्ता : हाँ। दादाश्री : जब मूर्च्छा नहीं रहती तब भरा हुआ माल सब खाली हो जाता है। जब उसका समय आता है तब खत्म हो जाता है !

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