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सहजता
'केवलज्ञान' के लिए कुछ करना है ?
संसार के लोग कहते हैं, 'केवलज्ञान' करने की चीज़ है । नहीं, वह तो जानने की चीज़ है । करने की चीज़ तो कुदरत चला रही है । करना वही भ्रांति है। यह शक्ति कितने वैभव से आपके लिए कर रही है ! उस शक्ति को तो पहचानो। यह तो 'व्यवस्थित' शक्ति का काम है ।
यह करो, यह करो, वे फिर करने बैठे ! इसीलिए तो भगवान ऐसी मुद्रा में बैठे हैं। ऐसे पद्मासन में इस तरह से बैठे । हे भगवान! यह आप क्या सिखाना चाहते हो? तो कहते हैं, चुपचाप यही करो । सहज रूप से चल ही रहा है, उसमें दखलंदाजी नहीं करना । नहीं चलाना है, ऐसा भी नहीं कहना है और चलाना है, ऐसा भी नहीं कहना है । तो क्या कहना है? दखलंदाजी नहीं करूँगा ।
जहाँ दखलंदाजी नहीं, वहाँ अपने आप 'विलय' होता है
यह विज्ञान कैसा है? अपने आप ही विलय होता है, निकालना नहीं पड़ता क्योंकि वह जीवित नहीं है । इस संसार की जो आदतें हैं न, जिन्हें ज्ञान नहीं मिला है, उनके लिए जीवित हैं और इनकी (ज्ञान वाले की) जो आदतें हैं, वे मृत हैं । इसलिए कभी न कभी अपने आप, जैसे छिपकली की पूँछ कट गई हो तो भी वह हिलती ही रहती है, लेकिन क्या वह ऐसे हमेशा हिलती रहेगी ? कब तक ? उसमें जीवन नहीं है, उसमें दूसरे तत्त्व हैं, जब वे तत्त्व निकल जाएँगे, तो फिर बंद हो जाएगी। ऐसा ही यहाँ पर कुछ छोड़ना नहीं है, बिल्कुल कुछ भी नहीं छोड़ना है। अपने आप ही छूट जाता है।
प्रश्नकर्ता : यह जो 'चला जाएगा' कहा न, वह शब्द मुझे पसंद आया। मैं ऐसा सोचता हूँ कि कितना सहज स्वभाव है, 'चला जाता है', इसमें ?
दादाश्री : और जब तक 'चला न जाए' तब तक आपको 'देखते' रहना पड़ता है।
प्रश्नकर्ता : प्रयत्न नहीं करना है ?