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सहजता
नेसेसिटी। इसके बगैर शरीर नहीं रहेगा, मर जाएगा। सिर्फ, उतना ही व्यवहार है और वह भी भगवान ने कहा है कि एक ही बार खाना। उससे मरोगे नहीं। वह भी माँगकर खाना तो फिर आपको बर्तन वगैरह लाने की झंझट नहीं रहेगी, कपड़ा माँगकर ले लेना। फिर सारा दिन पुरुषार्थ करते रहना, उपयोग में रहना।
प्रश्नकर्ता : यह उदय स्वरूप से होता रहे और खुद उपयोग में
रहे?
दादाश्री : हाँ, यदि सारा दिन उपयोग में रहेंगे न तो फिर झंझट ही नहीं, कोई तकलीफ ही नहीं।
आवश्यक क्या? अनावश्यक क्या? यह तो खुद ही जंजाल में फँसता जाता है। दिनोंदिन और अधिक फँसता जाता है। घर में बगीचा नहीं था तो लोगों का बगीचा देखकर खुद बगीचा बनाता है। उसके बाद वहाँ खोदता रहता है, खाद डालता है, फिर पानी डालता रहता है। बल्कि यह जंजाल बढ़ाता है, भाई। कितनी जंजाल रखने जैसी थी?
प्रश्नकर्ता : सिर्फ, खाने-पीने की ही।
दादाश्री : हाँ, जिसे आवश्यक कहा जाता है। आवश्यक अर्थात् जिस के बगैर नहीं चलता। खाएँगे नहीं तो क्या होगा? मनुष्यपना बेकार में चला जाएगा। क्या होगा? अर्थात् ऐसा कुछ नहीं कि अभी तुम पूरनपूरी और ऐसा-वैसा सबकुछ खाओ। जो कुछ भी खिचड़ी या दाल-चावल हो लेकिन आवश्यक हो, उसी के लिए हमें परवश रहना था। किसके लिए? आवश्यक के लिए।
प्रश्नकर्ता : ठीक है।
दादाश्री : अब खाया तो क्या सिर्फ, खाने से काम चलेगा? फिर उसका परिणाम आएगा, रिजल्ट तो आएगा या नहीं, जो करोगे उसका?
प्रश्नकर्ता : आता ही रहता है।