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सहजता
प्रश्नकर्ता : उसके उदय भी ऐसे होते हैं न कि जब भूख लगती है तब चीज़ मिल जाती है।
दादाश्री : वह तो नियम ही है, मिल ही जाती है। सबकुछ मिल जाता है, सहज ही।
प्रश्नकर्ता : तो फिर ये सभी आवश्यक में ही आता है न जैसे कि खाने का है, कपड़े नहीं न? आवश्यक में कपड़े नहीं आते?
दादाश्री : कुछ भी नहीं। आवश्यकता में कपड़े वगैरह कुछ नहीं आते, जो देह के लिए ज़रूरी हो, वह।
सहज दशा तक पहुँचने के प्रयत्न में प्रश्नकर्ता : अभी हम इन संयोगों में हैं और ये सारी आवश्यकता से बहुत अधिक वस्तुएँ हैं, यहाँ से आवश्यक स्थिति तक पहुँचने के लिए कौन सा मार्ग है? रास्ता कौन सा है?
दादाश्री : यह जैसे-जैसे कम होता है वैसे-वैसे। जितना बढ़ाएँगे उतना लेट होगा। यदि कम करेंगे तो जल्दी होगा।
प्रश्नकर्ता : कम करने के लिए क्या करना है?
दादाश्री : यदि तुझे शादी नहीं करनी है तो कम नहीं होगा? और जिसे शादी करनी हो, उसे?
प्रश्नकर्ता : बढ़ जाएगा।
दादाश्री : हाँ! तो बस। कुछ निश्चय तो होना चाहिए न? सब योजनापूर्वक होता है या ऐसे ही गप्प? मोक्ष में जाना है तो योजनापूर्वक होगा न?
प्रश्नकर्ता : योजनापूर्वक अर्थात् ऐसा है कि खुद को करना पड़ता है? खुद को योजनापूर्वक सेटिंग करना पड़ता है ? ऐसे सभी डिसिज़न लेने पड़ते हैं ?
दादाश्री : लेने नहीं हैं, वे सब तो हो ही चुके हैं। यह तो, हम सिर्फ बातचीत कर रहे हैं, इसमें से जितना भाव कम होता जाएगा उतना