Book Title: Sahajta Hindi
Author(s): Dada Bhagwan
Publisher: Dada Bhagwan Aradhana Trust

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Page 175
________________ १३६ सहजता प्रश्न प्रश्नकर्ता : अर्थात् वह अपना स्वभाव है, आत्मा का? दादाश्री : वह तो आत्मा का स्वभाव है। जैसे यह पानी मिसीसिपी नदी में से निकलता है वहाँ से तीन हजार माइल के बाद अपने आप समुद्र को खोज ही लेता है। वह उसका स्वभाव है, सहज स्वभाव है। प्रश्नकर्ता : उस स्वभाव में आने के लिए पुरुषार्थ करना पड़ेगा न? दादाश्री : विभाविक पुरुषार्थ करेंगे तो मिलेगा? पागल मनुष्य पुरुषार्थ करेगा और समझदार हो जाएगा ऐसा होता है क्या? अतः समझदार मनुष्य के शरण में जाकर कहना चाहिए कि आप कृपा कीजिए। प्रश्नकर्ता : दादा, आप ऐसा कहते हो न कि मोक्ष दो घंटों में ही मिल जाता है। पहले, यदि ज्ञानी के अंतराय जाएँगे तब न! दादाश्री : हाँ, लेकिन वे अंतराय नहीं जाते न! अंतराय किए हैं न! प्रश्नकर्ता : हाँ! लेकिन वह आपने कहा था, कि 'सिर्फ उन अंतरायों को देखना ही है ऐसा कहा, ज्ञाता-दृष्टा भाव में रहकर'। दादाश्री : देखने पर ही छुटकारा है। जो अंतराय हैं वे संयोग स्वरूप से आते हैं और वे अपने आप वियोगी स्वभाव के हैं। उन्हें देखने पर ही छुटकारा होता है। जहाँ संयोग निकाली है वहाँ झंझट किसलिए? प्रश्नकर्ता : लेकिन दादा, इसमें तो कितने जन्म चाहिए उससे छूटने के लिए? तो उसके लिए यह सब निकाली (निपटारा) है, ऐसा समझना है क्या? दादाश्री : निकाली ही है। यह तो, लोगों को समझ में नहीं आने से यह गड़बड़ की है! यदि निकाली है तो समझ लो न! यदि ग्रहण करोगे तो चिपक जाएगा, यदि त्याग करोगे तो अहंकार चिपक जाएगा।

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