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सहजता
दादाश्री : जब सभी में लगेगा तभी काम होगा न ! अभी तो दूसरे में इन्टरेस्ट है। आपको शादी करने में इन्टरेस्ट नहीं है तो साफ मना कर देते हो, नहीं है मेरा । यदि बाहर के संयोग आते हैं तो भी फेंक देते हो ऐसा सब होना चाहिए न ?
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परिग्रह के सागर में संपूर्ण अपरिग्रही
प्रश्नकर्ता : तो इन परिग्रह को कम करना, वह लिमिट या परिग्रह की मर्यादा रखनी है ?
दादाश्री : ज्ञान प्राप्ति के बाद आपका सभी डिस्चार्ज है। परिग्रह बढ़ाना, वह भी डिस्चार्ज और परिग्रह की मर्यादा करनी, वह भी डिस्चार्ज और अपरिग्रही रहना, वह भी डिस्चार्ज है क्योंकि अपरिग्रही रहने का जो भाव किया था, उससे अपरिग्रही हुआ। लेकिन वह भी डिस्चार्ज है, उसे भी छोड़ देना पड़ेगा । वह भी मोक्ष में साथ में नहीं आएगा। वह तो जिस स्टेशन पर हेल्प करता हो उस स्टेशन पर हेल्प करेगा । इस स्टेशन पर कुछ हेल्प नहीं करेगा। इस स्टेशन का हल तो तुझे लाना है। इन सभी को सॉल्व कर लेना है।
प्रश्नकर्ता : जब अंदर ऐसा एकदम पक्का है कि यह चीज़ मेरी नहीं है तो अगर उसे कोई ले जाए तो भी मैं उससे अलग हूँ न ?
दादाश्री : हाँ, ऐसा सब होना चाहिए उसमें हर्ज नहीं है। उन भरत राजा को ऐसा ही था कि सारा राज्य ले लें, यदि रानियों को उठाकर ले जाए तो भी वे हँसते, ऐसे थे । या तो फिर ये सब होना ही नहीं चाहिए। या फिर परिग्रह होने के बावजूद संपूर्ण रूप से अपरिग्रही होना चाहिए। हमारा ऐसा ही है, सभी परिग्रह होने के बावजूद भी संपूर्ण रूप से अपरिग्रही!
प्रश्नकर्ता : सभी परिग्रह होने के बावजूद संपूर्ण रूप से अपरिग्रही अर्थात् चीज़ और खुद, उनका ऐसा क्या कनेक्शन किया? उन्हें किस तरह से अलग किया ?
दादाश्री : अलग नहीं किया, 'मैं' अपरिग्रह वाला ही हूँ ।