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अंत में प्राप्त करना है अप्रयत्न दशा
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दादाश्री : खाने का क्या परिणाम आता है? प्रश्नकर्ता : संडास जाना पड़ता है।
दादाश्री : फिर पानी पीया तो? बाथरूम में भागदौड़ करनी पड़ती है। श्वास लिया, उसका उच्छ्वास होता है लेकिन इसकी ज़रूरत है। यदि श्वास नहीं लेंगें तो भी नुकसान होगा, पानी नहीं पीएँगे तो भी नुकसान। ये सभी आवश्यक चीजें हैं। अब कपड़े भी आवश्यक हैं। ठंड के दिनों में क्या होता है? क्योंकि मनुष्य इन सब सीज़न के अधीन है, वे सारी सीज़न मनुष्य की प्रकृति के अधीन नहीं हो सकती। कोई व्यक्ति ठंड के दिनों में गरम कपड़ों के बगैर रह सकता है, जबकि गर्मी में उससे नहीं रहा जाएगा। ऐसा होता है न? इसलिए कैसे भी कपड़े चाहिए लेकिन कपड़े कैसे होने चाहिए? खादी के हो, अन्य कोई भी हो, चाहे जैसे भी हो, सस्ते और अपने शरीर को ढककर रखें वैसे चाहिए। यह मैंने कॉलर बनवाया है वह नहीं चाहिए। यह कफ बनवाया है उसकी भी कोई ज़रूरत नहीं। कॉलर और कफ बनवाते हैं न? अनावश्यक। इसलिए यदि आवश्यक को ही समझ लें तो व्यक्ति को किसी भी प्रकार का दुःख नहीं रहेगा। इन जानवरों को दुःख नहीं है, तो फिर मनुष्यों को दुःख होता होगा? यह तो अनावश्यक को बढ़ाता जाता है। स्लेब डाला और ऊपर से मेंग्लौरी खपरैल डाली। सबकुछ बढ़ाता है या नहीं? आपने थोड़ा-बहुत बढ़ाया है, क्या?
फिर फरियाद करता है, 'या खुदा परवरदिगार! फँस गया' कहेगा! अरे भाई, तुमने ही बढ़ाया है न तो फिर उसमें खुदा क्या करेगा? आप अनावश्यक बढ़ाएँगे उसमें खुदा बेचारा क्या करेगा? आप को क्या लगता है? कुछ बोलते नहीं? आप अनावश्यक चीज़ों को बढ़ाओ और फिर खुदा का नाम लेकर कहो कि हे खुदा ! मैं फँस गया। इसलिए इस संसार में कौन सी चीज़ आवश्यक है और कौन सी अनावश्यक है, वह पक्का कर लेना। आवश्यक अर्थात् अवश्य ही चाहिए और अनावश्यक तो ऊपर से बढ़ाया, मोह के कारण। उसके पास राजमहल में चाहे कितनी भी अनावश्यक चीजें हो, फिर भी बारह-साढ़े बारह बजे आहार लेने के लिए तो आना ही पड़ेगा न? क्योंकि वह आवश्यक चीज़ है। यदि और