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[7] ज्ञानी प्रकाशमान करते हैं अनोखे प्रयोग
अंतःकरण की शुद्धि के साधन प्रश्नकर्ता : यह बुद्धि जो हमें सहज नहीं होने देती, उसे शुद्ध करने के लिए पाँच आज्ञा के अलावा अन्य कोई साधन है क्या?
दादाश्री : यदि यहाँ पर सभी डॉक्टरों को इकट्ठा करे तो वे 'दादा भगवान ना असीम जय जयकार हो' बोलेंगे क्या? कितने बोलेंगे? एक भी नहीं बोलेगा। बुद्धि घुस गई है न, इसलिए शुक्ल अंतःकरण खत्म हो गया!
प्रश्नकर्ता : अर्थात् बौद्धिक परिग्रह बढ़े, इसलिए बुद्धि बढ़ी?
दादाश्री : हाँ, इसलिए सहज होने की ज़रूरत है। उसमें ऐसा सहज होना चाहिए, साथ में फिर प्रतिक्रमण भी करना चाहिए कि 'कितने दिनों से मैं यह बोलना चाहता हूँ, मुझसे बोला नहीं जाता, तो मेरे अंतराय दूर कीजिए।' ऐसा करते-करते सब ठीक हो जाएगा और अच्छी तरह से बोला जाएगा। फिर तन्मयाकार होकर अच्छी तरह से बोला जाएगा। यदि बुद्धि ज़रा सी भी बढ़ी तो शुक्ल अंत:करण खत्म हो जाता है।
खुद अलग हो गया यानी कि खुद को अपने आप से अलग कर लिया और फिर 'दादा भगवान ना असीम जय जयकार हो' गाने में तन्मयाकार हो गया तो मन में जो विचार आ रहे हों, वे भी बंद हो जाएँगे! अंत:करण शुद्ध होता जाएगा।
प्रश्नकर्ता : अर्थात् पढ़ाई करने से बुद्धि बढ़ी है न? तो उस हिसाब से तो अनपढ़ रहना अच्छा है?