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अंत में प्राप्त करना है अप्रयत्न दशा
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दादाश्री : रविवार का दिन हो तो आपको ऐसा तय करना है सुबह उठते ही दादा से कहना कि आज मैं लगाम छोड़ देता हूँ। लगाम छोड़कर बैठना है। जैसे वह हाँकने वाला व्यक्ति लगाम छोड़कर बैठ जाता है न, वैसे ही लगाम छोड़कर बैठ जाना है और फिर देखते रहना है, गाड़ी चल रही है या बंद हो गई या गड्ढे में जा रही है, वह सब देखना है। जब तक लगाम पकड़ता है तब तक खुद हाँकने वाला बन जाता है, ड्राइवर बन जाता है। अब तुझे लगाम छोड़ देनी है और दादा को लगाम सौंप देनी है। फिर आपको देखना है, चलता है या नहीं? बल्कि ज़्यादा अच्छा चलेगा। ऐसा चला-चलाकर तो दम निकाल दिया है इसीलिए सारे एक्सिडेन्ट होते हैं न! यह लगाम हाथ में है, इसीलिए तो एक्सिडेन्ट होते हैं।
आपको व्यवस्थित समझ में आ गया तो आपको अनुभव में आ गया। और यदि अनुभव में नहीं आया हो तो लगाम छोड़ दो, पाँचों (इन्द्रियों के) घोड़ों की और फिर रथ किस तरफ जा रहा है, उसे देखो। उसके बाद कहता है, यह तो बहुत अच्छा हुआ, सबकुछ इतना अच्छा हो गया और घोड़ों की नाक में से जो खून निकलता था, वह भी बंद हो गया। जिसे हाँकना नहीं आता हो, वह क्या करता है? जब चढ़ाई आती है तब लगाम खिंचता है और ढलान आने पर, जब उतार आती है तब ढील देता है, इसलिए उसे ठोकर लग जाती है। इसी के जैसे हाँकने का भी रहता है। अब इसे भान ही नहीं है और हाँकने बैठ गया है इसीलिए उस बेचारे का रक्त (खून) निकल गया है। वे बेचारे घोड़े भी समझ जाते हैं कि आज यह कोई घनचक्कर मिल गया है। ये घनचक्कर सेठ मिले हैं। जब कोई अच्छे सेठ मिलेंगे तब अपनी दशा सुधरेगी। तब कोई रास्ता मिल जाएगा। यानी ऐसा है, इसके बजाय तू छोड़ दे न। उसे छुड़वा दिया उसके बाद कहता है, 'यह तो बहुत अच्छा हुआ व्यवस्थित, बहुत सुंदर!' तब मैंने कहा, 'थोड़ा सा व्यवस्थित को सौंप दे भाई, लगाम नहीं पकड़ना।'
सिर्फ रविवार के दिन ऐसा नहीं कर सकते? महीने में चार दिन? प्रश्नकर्ता : कर सकते हैं।