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ज्ञानी प्रकाशमान करते हैं अनोखे प्रयोग
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पड़ती है, उसका क्या अर्थ है ? मैंने कहा, इससे पहले अनंत जन्मों में जो चिढ़ की है न, उस चिढ़ को निकालने के लिए ये सब करते हैं। चिढ़ को निकालना तो पड़ेगा न? चिढ़ को लेकर वहाँ जा सकते हैं क्या? इसलिए वे ताली बजाते हैं न! वहाँ पर वह चिढ़ की है, उसे निकालने के लिए यह सब है। यदि आप खुद करोगे तो वह निकल जाएगी। वर्ना, ऐसा काम करने से मुझे क्या फायदा? मैं तो ज्ञानी पुरुष और ज्ञान में ऐसा सब नहीं होता न! क्योंकि यह अक्रम विज्ञान है, यह सब तो खाली कर देना है। क्रमिक में ऐसा नहीं चलता। क्रमिक में तो साथ में रखकर मार भी खानी पड़ती है। यहाँ पर तो खाली ही करना है। शुद्धात्मा बनने के बाद फिर रहा क्या? इस तरह से क्रमिक में शुद्धात्मा नहीं बन सकते और जब शुद्धात्मा बन जाते हैं तो उसी जन्म में मोक्ष में चले जाते हैं। जबकि आप शुद्धात्मा बन गए तो व्यापारी व्यापार कर सकता है, ऐसा अपना अक्रम है। देखो न, ये भाई आराम से करते हैं न! आपको समझ में आया?
प्रश्नकर्ता : हाँ, मुझे समझ में आया। दादाश्री : अब, आप इस तरह सोचना। प्रश्नकर्ता : हाँ, ज़रूर।
उन रोगों को निकालने की कला दादाश्री : इस अक्रम विज्ञान में लॉ है ही नहीं, यह ताली बजानी। वैसे ताली भी नहीं बजानी है लेकिन जिनमें एटिकेट है, उनका रोग निकालने के लिए है।
प्रश्नकर्ता : लेकिन दादा, उसके बाद बहुत सहज रूप से बोला जाता है, अब तो होता है। अब तो चैन नहीं पड़ता।
दादाश्री : उस एटिकेट के रोग को निकालने के लिए ही यह है। एटिकेट जाए बगैर, धर्म कभी भी परिणाम नहीं पाता। जो एटिकेट के बाहर रहता है वहाँ पर धर्म परिणाम पाता है। इसलिए ये भी ऐसा कहते थे, यहाँ तालियाँ बजानी है? तब मैंने कहा, रोग निकालने के लिए है यह।