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सहजता
कहाँ करना है ? जिसने तिरस्कार किया, उसे करना है । उसे प्लस - माइनस कर ही लेना चाहिए न ?
प्रकृति सहज होने के लिए...
अर्थात् यह सब सहज, यहाँ तो गरबा वगैरह सब घूमते हैं, यहाँ सब चलता है। यहाँ महादेव जी के दर्शन करते हैं, माता जी के दर्शन करते हैं, सभी के दर्शन करते हैं लेकिन सब सहज परिणाम हैं।
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ऐसा है न, इन माता जी की भक्ति करने से प्रकृति सहज होती है। अंबा माता, दुर्गा देवी, सभी देवियाँ प्रकृति भाव को सूचित करती है । वे सहजता को सूचित करती है। अगर प्रकृति सहज हो जाए तो आत्मा सहज हो जाता है, अथवा आत्मा सहज हो जाए तो प्रकृति सहज हो जाती है।‘हमें' माता जी की भक्ति खुद की प्रकृति के पास करवानी है। ‘हमें' आत्मभाव से नहीं करनी है, 'चंदूलाल' के पास से देवी जी की भक्ति करवानी है और तभी प्रकृति सहज होती जाएगी।
यहाँ हिन्दुस्तान में तो लोगों ने माता जी के अलग-अलग नाम रखे हैं। यह साइन्स कितना बड़ा होगा ! कितनी सारी खोजबीन के बाद अंबा माता, सरस्वती देवी, लक्ष्मी देवी की खोज हुई होगी! जब यह सब किया तब साइन्स कितना ऊँचा रहा होगा ! वह सब अभी खत्म हो गया इसलिए माता जी के दर्शन करना भी नहीं आता !
माता जी वे आद्यशक्ति हैं ! वे प्राकृत शक्ति देती हैं। माता जी की भक्ति करने से प्राकृत शक्ति उत्पन्न होती है। अंबा माँ तो संसार के विघ्नों को दूर कर देती है लेकिन मुक्ति तो ज्ञान द्वारा ही प्राप्त होती है। यदि दर्शन करना आ जाए तो चारों माता जी प्रत्यक्ष हाज़िर ही हैं, जैसे अंबा माता, बहुचरा माता, कालीका माता, भद्रकाली माता । माता जी पाप नहीं धोती लेकिन प्राकृत शक्ति देती हैं।
अंबा माता जी हमारा कितना रक्षण करती हैं ! हमारे आसपास सभी भगवान हाज़िर ही रहते हैं । हम भगवान से पूछे बगैर, उनकी आज्ञा के बगैर एक कदम भी आगे नहीं बढ़ते । सभी भगवान की कृपा हम पर और हमारे महात्माओं पर बरसती ही रहती है !