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सहजता
आ गया। लेकिन संकोच हुआ ऐसा मैंने अनुभव किया। इसलिए मुझे ऐसा विचार आया कि यदि कोई कहेगा, कि कपड़े निकाल दो तो क्या करूँगा? तो क्या संकोच हुए बगैर रहेगा? यानी पहले से ही संकोच दूर करो, सहजता लाओ।
इसलिए ये सारे सहजता के प्रयोग करवाते हैं। ज्ञान तो आपको है ही लेकिन सहजता होनी चाहिए न? किसी भी प्रकार का भय नहीं रहना चाहिए, चाहे कैसी भी स्थिति हो । यदि सहज हो जाओगे तो मोक्ष होगा, तो भगवान स्वरूप हो जाओगे। खुद भगवान हो ऐसा भान होगा। जहाँ असहजता से ये सभी एटिकेट के भूत रहते हैं न, वहाँ कुछ भी नहीं होता, इसलिए सहज होने की ज़रूरत है।
अंत में सहज ही होना है। दिनोंदिन सहज ही होना है। यहाँ पर, ये सभी सहज होने के साधन हैं।
प्रश्नकर्ता : दादा कहते हैं वैसी पूर्ण सहज स्थिति किस तरह से आएगी?
दादाश्री : जो इन दादा को भजते हैं न, वे सहज स्थिति को ही भज रहे हैं इसलिए आप उतने सहज हो जाओगे।
एटिकेट निकले तो हो जाए सहज प्रश्नकर्ता : तो दादा, उस समय तो मैं ऐसे ताली बजाने का विरोध करता था लेकिन आज तो सभी के बजाय मैं ज़्यादा ज़ोर से ताली बजाता हूँ, तो ऐसा क्यों होता होगा?
दादाश्री : ऐसा है न, ऐसा कोई नियम नहीं है कि ताली बजाने से ही मोक्ष होगा और ऐसा भी कोई नियम नहीं है कि चुपचाप बैठकर पढ़ते रहेंगे तो मोक्ष होगा। मोक्ष जाने का नियम अर्थात् कैसा है? व्यक्ति सहज रहता है या नहीं, उतना ही, सहज! चुपचाप बैठे रहना और ताली नहीं बजानी, (पद गाना) पढ़ना उसमें एटिकेट आ गया, थोड़ा सा तिरस्कार आ गया और ये लोग कहेंगे, ताली बजाने से चित्त एकाग्र नहीं