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ज्ञानी प्रकाशमान करते हैं अनोखे प्रयोग
रहा, स्थिरता चली गई। इन दोनों की ज़रूरत नहीं है । यह जो चिढ़ घुस गई है न, उस चिढ़ को निकालने के लिए यह सब करते हैं । अनंत जन्मों से जो यह चिढ़ घुस गई है, उस चिढ़ को निकालने के लिए प्लसमाइनस करके सहज होना है ।
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इसमें जैन रहते हैं, सभी रहते हैं लेकिन किसी को कोई दखल ही नहीं, किसी को आपत्ति ही नहीं । जबकि पूरा संसार आपत्ति और परेशानी में ही फँसा हुआ है। आपत्ति, परेशानी और नियम में ही सभी फँसे हुए हैं। यहाँ पर आपत्ति भी नहीं और परेशानी भी नहीं। यहाँ तो छोटे बच्चों को भी अच्छा लगता है, बूढ़ों को भी अच्छा लगता है, अनपढ़ को भी अच्छा लगता है, पढ़े लिखे को भी अच्छा लगता है, हर एक को यहाँ पर अच्छा लगता है । इस वातावरण में सभी को आनंद ही रहता है। इसलिए छोटे बच्चे भी यहाँ से छः घंटे तक नहीं हटते। जहाँ यथार्थ धर्म रहता है वहाँ पर सभी रहते हैं और जहाँ एटिकेट वाला रहता है वहाँ पर धर्म जैसी चीज़ ही नहीं होती ।
गरबा से होती है प्रकृति सहज
अपने यहाँ ये जो गरबा कर रहे हैं, वे सहज हुए हैं जबकि बाहर वाले असहज हैं। अर्थात् यह हम बीच में किसलिए बैठते हैं, हमारे बैठने का क्या कारण है ? आपको सहज करना है । किसी भी तरह से आप T सहज हो जाओ। यह सारी क्रिया क्या ऐसी है कि जो ज्ञानी को शोभा दें ? क्या ज्ञानी ऐसे तालियाँ बजाते होंगे ?
अपना विज्ञान कैसा है कि सहज रूप से करो, किसी भी तरह से सहज हो जाओ। जब हम यात्रा पर गए थे न तब एक सौ पंद्रह लोगों की दो बोगियाँ थी, जॉइन्ट की हुई । तो किचन अंत तक चलता रहता था। चाय पानी भी अंत तक चलता रहता था । रसोई वहीं की वहीं सब । अब, सभी यात्रा में निकले हो तो ऐसे गाड़ी में ही कब तक बैठे रहेंगे ? इसलिए जब बड़ा स्टेशन आता तो वहाँ पर उतर जाते थे । वहाँ पर बीस मिनट तक गाड़ी खड़ी रहती, उतने समय तक सभी गोल-गोल घूमकर गरबा करते।