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सहजता
दादाश्री : समा जाती हैं। प्रज्ञाशक्ति पकड़ ही लेती है। ये पाँच आज्ञा, ये जो पाँच फंडामेन्टल सेन्टेन्स हैं न, वे पूरे वर्ल्ड के सभी शास्त्रों का अर्क (निचोड़) है!
आज्ञा का फ्लाय व्हील अगर आज्ञा का फ्लाय व्हील एक सौ इक्यासी तक पहुँच गया मतलब गाडी चलने लगी। एक सौ अस्सी तक पहुँचने के लिए हमें मेहनत करवानी है। एक सौ इक्यासी तक पहुँचने के बाद वह अपने खुद के बल से चलेगा। ये जो बड़े फ्लाय व्हील होते हैं न, उसे यहाँ से यहाँ तक, यहाँ से आधे तक ऊँचा करने के बाद वह अपने आप, अपने खुद के बल से ही बचे हुए आधे हिस्से में घूमते हैं। ठीक उसी प्रकार से यह भी दूसरा आधा अपने आप ही घूमता है। हमें वहाँ तक ज़ोर लगाना है, बस। फिर तो वह अपने आप ही सहज हो जाएगा, पूरा व्हील घूमेगा।
डिग्री बढ़ने का अनुभव प्रश्नकर्ता : यह नब्बे डिग्री तक पहुँचा या सौ डिग्री तक, उसका पता कैसे चलता है ?
दादाश्री : वह तो, खुद को बोझ हल्का लगता है और खुद सहज होता जाता है। जैसे-जैसे सहज होता जाता है वैसे-वैसे सब ठीक होता जाता है। सहज होता जाता है, सहज। क्या बोझा कम नहीं लगता? बोझ कम लगता है और उसका सब काम हो जाता है।
आज्ञा रूपी पुरुषार्थ : स्वाभाविक पुरुषार्थ पाँच आज्ञा का पालन करना, उसे पुरुषार्थ कहते हैं और पाँच आज्ञा पालन के परिणाम स्वरूप क्या होता है? ज्ञाता-दृष्टा पद में रह पाते हैं। यदि कोई हम से पूछे कि सही पुरुषार्थ किसे कहेंगे? तब हम कहेंगे, ज्ञाता-दृष्टा रहना, वह। ये पाँच आज्ञा, ज्ञाता-दृष्टा रहना ही सिखाती हैं न? जब रियल और रिलेटिव देख रहे हो तब वे जो आगे-पीछे के विचार आते हैं, उन्हें 'व्यवस्थित' कहकर बंद कर दो। अगर देखते समय